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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८६ ) ॥१॥ मुज मन तरुअर छांह, स्वामी अनुसरो ॥ जनम सफल माहरो करो ए ॥२॥विश्नु नरैसर वंश, धजा तणी परे॥जेणे कीयो जगे गाजतो ए॥३॥ निसुणि वयण मुज तात, हुं भमीयो घणु।। भव सायरनां पुरमाए ॥ ४ ॥ हवे निज पासे राखो, दाखो शुभ मति ॥ विनय करे इम विनती ए ॥ ५॥ इति ॥ ॥ श्री वासुपूज्य जिन स्तवन ॥ ॥ अनेहारे वाहालो वसे विमनाचलेरे-ए देशी ॥ ॥ अने हारे म्हारो प्रभु दिये छे देशनारे, ते तो सांभळे छे भविजन ॥ समवसरण बेठा शोभतारे, भांखे चार मुखे सुप्रसन्न ।। प्रभु दिये छे देशनारे ॥१॥ अने हारे बारे परखदा तिहां मळीरे, सवि बेसे आपणे ठाय ॥ वाणी जोजन गामिनीरे, ए तो सुणतां आवे दाय ॥ प्रभु० ॥२॥अने हारे रुडां बयणडां नीकळेरे, धुनी मेघ परे गंभीर ॥ पामर वचने न मिले कइरे, उंचे शब्दे साहस धीर ॥ प्रभु० ॥ ३ ॥ अने हारे पडछंदा उठे बोलनारे, अति सरलपणे अभिराम ॥ माळव कोशिक रागथीरे, जे आणे हियडुं ठाम ॥ प्रभु०॥४॥ अने हारे श्रीवासुपूज्य जिन साहिबारे, महारी मिथ्या मतिने टाळ ॥ खुशाल मुनिने नित आपणोरे, तुमे जाणीने थाज्यो दयाळ प्रभु० ॥५॥ इति ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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