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(१८५ ) ॥ वा०॥ सुविधी जिणंद बतावोर ॥ प्रेमशुं कांति कहे करि करुणा, मुज मन मंदिर आवोरे ॥ लागे० ॥५॥ इति ॥
॥श्रीशीतलनाथ जिन स्तवन ।। ॥ हीरजीगुरुवंदो (अथवा) विमलाचल वेगे वधावो-ए देशी॥
॥शीतलजिन सहजानंदी, थगो मोहनी कर्म निकंदी॥ पर जायि बुद्धि निवारी, परगामिक भाव समारी ॥ मनोहर मित्र ए प्रभु सेवो, दुनिआमांहि देव न एवो ॥ मनोहर० ॥१॥ वरकेवलनांण विभासी, अज्ञान तिमिर भर नासी ॥ जयो लोकालोक प्रकाशी, गुण पज्जव वस्तु विलासी ॥ मनो० ॥२॥ अक्षय थिति आव्याबाध, दानादिक लब्धि अगाध ॥ जेह साश्वत सुखनो स्वामी, जड इंद्रिय भोग विरामी ।। मनो० ॥३॥ जेह देवनो देव कहावे, योगीशर जेहने ध्यावे॥ जसु आणा सुरतरु वेली, मुनि हृदय आरामे फेलो ॥ मनो० ॥ ४ ॥ जेहनी शीतलता संगे, सुख प्रगटे अंगो अंगे ॥ क्रोधादिक ताप समावे, जिन विजयाणंद सभावे ॥ मनो० ॥५॥ इति ॥
॥ श्री श्रीयांसनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ पृथ्वी पाणी तेउ वाउ वनस्पती, ए पांचे थावर
___ कह्या ए-ए देशी ॥ वंदु जिन श्रेयांस, हंस तणी परे ।। मुनिजन मन कमलें रमेए
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