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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८५ ) ॥ वा०॥ सुविधी जिणंद बतावोर ॥ प्रेमशुं कांति कहे करि करुणा, मुज मन मंदिर आवोरे ॥ लागे० ॥५॥ इति ॥ ॥श्रीशीतलनाथ जिन स्तवन ।। ॥ हीरजीगुरुवंदो (अथवा) विमलाचल वेगे वधावो-ए देशी॥ ॥शीतलजिन सहजानंदी, थगो मोहनी कर्म निकंदी॥ पर जायि बुद्धि निवारी, परगामिक भाव समारी ॥ मनोहर मित्र ए प्रभु सेवो, दुनिआमांहि देव न एवो ॥ मनोहर० ॥१॥ वरकेवलनांण विभासी, अज्ञान तिमिर भर नासी ॥ जयो लोकालोक प्रकाशी, गुण पज्जव वस्तु विलासी ॥ मनो० ॥२॥ अक्षय थिति आव्याबाध, दानादिक लब्धि अगाध ॥ जेह साश्वत सुखनो स्वामी, जड इंद्रिय भोग विरामी ।। मनो० ॥३॥ जेह देवनो देव कहावे, योगीशर जेहने ध्यावे॥ जसु आणा सुरतरु वेली, मुनि हृदय आरामे फेलो ॥ मनो० ॥ ४ ॥ जेहनी शीतलता संगे, सुख प्रगटे अंगो अंगे ॥ क्रोधादिक ताप समावे, जिन विजयाणंद सभावे ॥ मनो० ॥५॥ इति ॥ ॥ श्री श्रीयांसनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ पृथ्वी पाणी तेउ वाउ वनस्पती, ए पांचे थावर ___ कह्या ए-ए देशी ॥ वंदु जिन श्रेयांस, हंस तणी परे ।। मुनिजन मन कमलें रमेए For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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