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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८४) घणीजी, जिनगुण जिनजी सहायरे ॥ तु० ॥३॥ आश्या विलुद्धा जे रह्या जी, 'याचक जन वळि दासरे । माधुरता मधुर स्वरेजी, पूरीजे तेहनी आशरे ॥ तुं० ॥ ४॥ तुजमुज अंतर छ नहिजी, जिम कस्तुरी घनवासरे ॥ चंदनता सुचंदनेजा, प्रेमे चतुर प्रकाशरे ॥ तुं० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ श्रीसुवधिनाथ जिन स्तवन । ॥ आंखडीयर में आज शत्रुज य दीठोरे-ए देशी ॥ ॥ताहारी अजव शी जोगनी मुंद्रारे, लागे मुने मीठीरे।। ए तो टाळे मोहनी निद्रारे, परतक्ष दीठीरे ॥ए आंकणी ॥ लोकोत्तरथी जोगनी मुद्रा ॥ वाल्हा मारा ।। निरुपम आसन सोहेरे ॥ सरस रचित शुकल ध्याननी धारे, मुरनरना मन मोहेरे ।। लागे० ॥१॥ त्रिगडामां रतन सिंहासन बेसी, ॥ वाल्हा मारा ॥ चिहूं दिशे चामर ढळ वेरे ॥ अरिहंत पर प्रभुतानो भोगी, तो पण जोगो कहावेरे ॥ लागे० ॥ २ ॥ अमृत झरणि मीठी तुज वाणि वा०॥ जेम आषाढो गाजेरे ॥ कान मारग थइ हियडे पेसी, संदेह मनना भांजे रे ।। लागे० ॥ ३॥ कोडि गमे उभा दरबार । वा०॥ जयमंगल सुर बोलेरे ॥ त्रण भुवननि रिद्ध तुज आगे, दीसे इम तृणा तोले रे ॥ लागे० ॥४॥ भेद लहं नहि जोग जुगतिनो १मागण-याचना करनार. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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