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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९ ) त्रिभुवन पति त्रेवीसमोए, जास अखंडीत आण ॥ एक मनें आराधतां, लहिये कोड कल्याण, ॥ ३ ॥ इति ।। ॥ चोथु.॥ - ॥ सकल भविजन चमत्कारो, भाग महिमां जेहनो ॥ निखिल आतम रमा राजित, नाम जपीये तेहनो । दृष्ट कर्माष्टक गजारी, भविक जन मन सुखकरो। नित्य जाप जपोये, पाप खपीये, स्वामी नाम शंखेश्वरो ॥१॥ बहु पुण्यशशी देश काशो, तथ्य नयरोवणारशी ।। अश्वसेन राजा राणो वामा, रूपे रति तनुं सारशी ॥ तस कुखे सुपन्न चौद सूचित, स्वर्गथी प्रभु अवतरबो ॥ नित्य० ॥२॥ पोश मासे कृष्णपक्षे, दशमि दिन प्रभु जनमीया । सुरकुमरि सुरपति भक्ति भावे, मेरु श्रृंगे स्थापिया ॥ प्रभाते पृथ्वी पति प्रमोदे, जन्म महोच्छच अति कर्यो ॥ नित्य० ॥३॥ त्रण लोक तरुणी मन अगोदी, तरुण वय जब आविया ।। तव मात तातने परण्य चाते, भामिनि परणावीया ।। कमठ शठकृत अग्निकुंडे, नाग बळता उर्यो ॥ नित्य० ॥४॥ पोश बदि एकादशी दिन, प्रवा जिन आदरे ॥ सूर अमूर राजो भक्ति ताजी, सेवना झाझी करे।।काउस्सग करतां देखी कमठे, किध परिसह आकरो ॥ नित्य०॥५॥ तव ध्यान धारारुढ निनपति, मेघ धारे नवि चळयो॥तिहां चलित आसन धरण आयो, कमठ परिसह अटकळयो । देवाधि देवनी खरी सेवा, कमठने काढी परो ॥ नित्य० ॥६॥ क्रमे पामी केवळ ज्ञान कमळा, संघ चवीह स्थापीने, प्रभु गया मोक्षे समेत शिखरे, मास अणमण For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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