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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७ ) . उतरी शिव बधुने वरीये ॥ १॥ अरिहंत पद आराधतां तिर्थकर पद पावे || जग उपकार करे घणा, सिधो शिवपुर जावे ||२|| सिद्ध पद ध्यातां थकां अखय अचल पद पावे || कर्म कटक भेदी करी, अकल अरुपी थावे || ३ || आचारज पद ध्यावतां, जुगप्रधान पद पावे || जिनशासन अजवालीने, शिवपुर नयर सेाभावे ॥४॥ पाठक पद ध्यावत, वाचक पद पावे ॥ भणे भणावे भावसुं, सुरपुर शिवपूर जावे ॥ ५ ॥ साधुपद आराधर्ता, साधुपद पावे ॥ तप जप संयम आदरे, शिवसुंदरीने कामे || ६ || दरसण नाण पद ध्यायतां, दर्सण नाण अजुआले || चारित्र पद ध्यायता, शिव मंदिरमां माठे || ७ || केशर कस्तुरी केतकी, मचकुंद माछति माले || सिद्धचक्र से त्रिकाल, जिम मयणाने श्रीपाले ||८|| नव आंबील नव वार शियल, समकितसुं पालो || श्री रुपविजय कविराजनी, माणेक कहे थह उजभाको ।। ९ ।। इति ॥ ॥ श्रीजुं ॥ ॥ पेहले पद अरिहंतना, गुण गाउ नित्ये ॥ बीजे सिद्धतना घणा, समरो एक चित्ते || आचार्य त्रिजे पदे, मणमो बिहु करजोडी, नमीये श्री उवझायने, चोथे मद मोडी ॥२॥ पंचमपद सर्व साधु ए, नमतां नाणो छाज ॥ ए परमेष्टी पंचने, ध्याने अविचल राज || ३ || दंसण शंकादिक रहित, पदे छठे धारो ॥ सर्व नाणपद सातमे, खिण एक नवि विसारो ॥ ४ ॥ चारित्र For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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