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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८) चोखु चित्तथी, पद अष्टमे जपीए ॥ सकळ भेद विचे दान फल, तप नवमे तपीये ॥५॥ ए सिद्धचक्र आराधतां, पुरे वंछित कोड। मुमतिविजय कविरायनो, राम कहे करजोड ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ चोथु ॥ ॥प्रथम नमुं अरिहंतने, गुण बार सहिता ॥ पद बीजे नमो सिद्धने, भवीअड गुणवंता ॥ १ ॥ पद त्रीजे आचार्यजी, गुण छत्रीश विराजे । उपाध्याय चोथे पदे, जस गुण पचवीश छाजे ।। ॥ २ ॥ सतावीश गुण साधुजी, ते त्रिलोकमां नमिंद्र । सडसटि बोले अलंकों , दर्शन गुण रमिंद्र ।। ३ ॥ज्ञान नमो पद सातमे, भेद एकावन रुप ॥ चरण सित्तरी गुण नमो, निजगुण रमण स्वरुप ॥ ४ ॥ नवमे पद भवि तप नमो, इच्छारोधक जेह ।। भेद पचास छे एहना, अशुभ करम देव मेह ॥५॥ अंगदेश चंपा धणी, मयणां साथे श्रीपाळ ॥ सिद्धचक्र आराधीने, जेम लहो ऋदि रसाळ ॥ ६ ॥ तेम आराधे जे भवी, सिद्धचक्र मन रंग ॥ श्री जिन दीपक एम कहे, ते लहे शिव सुख संग ॥७॥ इति ॥ पांचसु ॥ ॥ सिद्धचक्र सेवो रुदा, भावे भवि प्राणी ॥ पंछित पूरण सुरतरु, सुरमणी सम जाणी ॥ १ ॥ सिद्धचक्र सेव्यो जेणे, सवि गुण मणी खांणी ॥ ऋद्धि वृद्धि नव निधि सिधि, निज मंदिर For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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