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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२८) भरतार ॥ मोरा जिन० ॥१॥ वदन विलेोकी सफल करे अक तार रे ।। जिन० ॥ धन ते नगरी धन ते नरने नार ॥ मो० ॥ दुर निवारो दुखदाइ संसार रे ।। जि. ॥ तो हुँ तुमारो विसरू नही उपगार ।। मो० ॥ २ ॥ नरपति धनपति सुरपति गोता खात रे ॥ जि० ॥ तो किणनें कहुं अंतरगतनी वात ।। मो०॥ तरसु निरंतर देखण तुझ दीदार रे ॥ जि० ॥ सांसमे समरू साहिबने सेोवार ॥ मो० ॥ ३ ॥ मुजरो माहरो मनमोईन अवधार रे ॥ जि० । जिम तिम करीने भवजल पार उतार |मो०॥ साचो लागो चाक मनीठ ज्यु रंग रे ॥ जि० ॥ अंग न लागे ओछा रंग पतंग ।। मो० ॥ ४ ॥ मन हरी म्हारो मोहाकुल दिन रात रे ।। जि० ॥ कहुं किण विध विषयेनो अंत न आत । मो०॥ कामी क्रोधो कपटी छु जगनाथ रे ॥ जि० ॥ रहणी हमारी लाज तीहारे हाथ ॥ मो० ॥ ५ ॥ जीवन वाहाला विरुद विचारो जोय रे॥ जि० ॥ अधम उधारो तो प्रभु साची होय ॥ मो०॥ अरजी लीज्या अनुचररी मन मांहे रे ॥ जि० ॥ भव भव जिनमत होज्यो अवर न चाहे ॥ मो० ॥६॥ श्री सिमंधर साहिब वसीया दुर रे ॥ जि० ॥ जवही समरूं तबही आनंदपुर । मो० ॥ मुजरो म्हारो मानो उगते सूर रे ॥ जि० ॥ रत्नमुनी हियै वसज्यो नाय हजुर । मो० ॥ ७ ॥ इति ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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