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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२७) विजय देव मुरीश्वर राया, जश महिमा महियल गाजेजी ॥ ING तास पाट प्रभावक सुंदर, विजयसिंह सुरीशजी । वडभागी बैरागो त्यागो, सत्यविजय मुनीशजी ॥८॥ तसपद पंकज मधुकर सरीखा, कपुरविजय मुणिदानी ॥ खिमाविजय तस आसन शोभित, जिनविजय गुरुगुण चंदाजी ॥ ९॥ गीतारथ सारथ सुमुण शोभागी, लक्षण लक्षित देहाजी ॥ उत्तम विजय गुरु जग अयवंता, जेहने प्रवचन नेहाजी ॥ १० ॥ ते गुरुनी बहु मेहेर नजरथी, पामी तास पसायेजी ।। रतनविजय शिष्य अति उछरंगे. पीन चोवीस गुण गायाजी ॥ ११ ॥ सूर्यमंडण पास पसाया, धरमनाथ Bखदायाजी ॥ विजय घरम सुरीश्वर राज्ये, श्रद्धा बोध चपागजी ।। १२ ।। अढारसे चोनीसा वरसे, सुरत रही चोमासुभी। माधव मासे कृष्ण पक्षे, त्रयोदशी दीन खासजी ॥ १३ ।। इति चोवीसी संपूर्ण ॥ ॥श्री मंधर जिन स्तवन ॥ जाप्राण पीयारा पास जिनेसर रायरे जिनवरजो (अथवा) तोरणथी रथ फेरी चाल्या कंथरे प्रीतमजी-ए देशी का विजया विराजे पुखल वइ जिनराय रे ॥ जिनपरजी ॥ अंडरगणी पुर दीगं आवे दाय ॥ मोरा निनवरजी ॥ मन विसबीबी श्रेयांस कुमार रे ॥जिनवरजो॥ सत्यकी नंदन रुकमणीनो For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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