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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७३) श्री परमात्मानुं चैत्यवंदन. 4 ૧ जगन्नाथने हुं नमुं हाथ जोडी करूं विननि भक्तिशुं मान मोडी || कृपानाथ संसार कूपार तारो, लह्यो पुण्यथां आज देदार सारो || १ | सोहिला मळे राज्यदेवादि भोगो, परम दोहिलो एक तुज भक्ति जोगो ॥ घणा काळधी तुं लह्यो स्वामी मीठो, प्रभु पारगामो सहु दुःख नीठो ॥ २ ॥ चिदानंदरुपी परब्रह्म लीळा. विलासी विभो त्यक्त कामानि कीलाः गुणधार जोगोश नेता अमायी, जय त्वं विभा भूतळे सुखदायी ॥ ३ ॥ न दोठी जेणे ताहरी जोग मुद्रा, पड्या रात दिसे महा मोहनिद्रा; केसी तास होशें गति ज्ञान सिंधो, भवतां भवे हे जगजीव बंधो ॥ ४ ॥ सुधास्पंदिते दर्शन नित्य देखे, गणुं तेहनो हे विभो जन्म लेखे; स्वदाज्ञा वशे जे रह्या विश्वमां, करे कर्मनी हाण क्षण एकमहे ॥ ५ ॥ जिनेशाय नित्ये प्रभाने नमस्ते भवी ध्यान होजो हृदये समस्तेः स्तवी देवना देवने हर्ष पूरे, मुखांभोज भाळी भजे हे उरे || ६ || कहे देशना स्वामी वैराग्य केरी, सुणे पर्षदा बार बेठी भलेरी सुत्रांभोज धारा समी ताप टाळे, बेहु बांधवा सांभळे एक ढाळे | ७ ॥ ॥ अथ चउदसें बावन गणधरनु चैत्यवंदन ॥ || गणधर चारासो कहा || बलि पंचाणु छेक ॥ दोय अधिक इगसयगणा || सोल अधिक सत एक ॥ १ ॥ सत १ समुद्र. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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