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(२३) कर्म कृतांतबलं, बलधाम धुरंधर पंकनलं॥४॥जलजध्वय पत्र प्रभानयनं, नयनंदित भव्य नरेश मनं ।। मन मन्मथ महीरुह वन्हिसम, समतामय रत्नकरं परमं ॥५॥ परमार्थ विचार सदा कुशलं, कुशलं कुरुमे जिननाथ अलं ! अलिनी नलिनी नलिनील तनु, तनुताप्रभु पार्श्वजिनं मुधनं ॥ ६॥ धन धान्यकरं करुणा परमं, परमामृत सिद्धि महासुखदं ॥ सुखदायक नायक संतभवं, भवभूत प्रभु. पार्वजिनं शिवदं ॥ ७ ॥ इति ॥
॥श्री महावीरस्वामीजीनुं चैत्यवंदन ॥ __उर्ध्व लोक दशमा थकी, कुंड पुरे मंडाण ॥ वृषभ योनि चोवीशमा, वर्द्धमान जिन भाण ॥ १ ॥ उतरा फाल्गुणी उपना, मांनवगण सुखदाय ॥ कन्यारशि छद्मस्थमां, बार वरस वही जाय।।२।। शाल विशाल तरु तलेंए, केवलनिधि प्रगटाया ॥ वीर बिरुद घरवा भणी, एकाकी शिव जाय ॥ ३॥ इति ।।
॥ बीजं ॥
॥ वर्द्धमान जिनवर धणी, मणनित्य मेव ॥ सिद्धारथ कुल चंदलो, सुर निर्मित सेव ॥१॥ त्रिसला उयर सर हंस सम, मगट्यो मुखकंद ॥ केसरी लंछन विमल तनु, कंचनमय द्वंद ॥२॥ महावीर जगमां वडोए, पावापुरि निर्वाण ॥ सुरनर भूप नमे सदा, पामे अविचल ठाण ॥ ३ ॥ इति ॥
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