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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४ ) ॥ श्रीजं. ॥ ॥ नव चोमासी तप कर्या, त्रणमासीदोय || दोय दोय अ हमासी, तिम दोय मासी होय || १ || बहोतेर पास खमण कर्या, मास खमण कर्या बार || पट मासी आदयीं, बार अठम तप सार ॥ २ ॥ षटमासी एक तिम कर्यो, पण दिन उण घटमास || बसे ओगणत्रीस छठमला, दिक्षा दिन एक खास || ३ || भद्र प्रतिमा दोय तिम, महाभद्र दिन च्यार ।। दस दिन सर्वतो भद्रना, लागट निरधार ॥ ४ ॥ विण पाणी तप आदर्यो, पारण दिन जास || द्रव्या हारण नक कह्यो, त्रणसें उगण पंचास ||५|| छझस्थे एणीपरे रह्या, सह्या परिसह घोर || शुकल ध्यान अनलै करी, बाल्या कर्म कठोर || ६ || शुकल ध्यान अंतर रह्या ए, पाम्या केवलनाण || यशविजय कहे प्रणमतां, लहीये नित्य कल्याण ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ चोथुं. ॥ | वर्धमान चवीशमां, क्षत्रीकुंडे जाणो ॥ द्विधार्थ त्रिशला वणा, नंदन सुर राणो ॥ १ ॥ सेवन वरणी सात हाथ, सींह लंछन साहे || वरस बांतेर आयु जास, भवियणना मनमेाहे || २ || अपापाये शीवपुर गयाए, वीर जिनेश्वर राय ॥ श्रीविनय विजय उवझायनो, रूपविजय गुण गाय ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पांचमुं ॥ ॥ छत्र शिरपर छत्र शिरपर, त्रण सहिंत || चामर सुरपति For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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