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( १३ )
॥ श्रीजुं ॥
॥ शांतिकरण श्री शांतिनाथ, गजपुर धणी गाजे ॥ वीस्वसेन अचीरा तणो, सुत सबळ दीवाजे ॥ १ ॥ धनुष चालीश हेमवर्ण काय, मृग लंछन छाजे || लाख बरसनुं आउखु, अरीयण मद भांजे ॥ २ ॥ चक्रवती प्रभु पांचमाए, शोळमां श्री जगदीश ॥ रुपविजय कहे मुझ मल्यो, पुरण सकल जगीश ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ श्री कुंथुनाथजीनुं चैत्यवंदन ॥
॥ सतरमां श्री कुंथुनाथ, श्री राणी जायो ॥ गजपुर नयरी सुरीराय, जाडवायस पायो ॥ १ ॥ सहस पंचाणु वरस आयु छाग लंछन धायेा ॥ धनुष पात्रोश वर देहडी, हेम वर्ण सुहायो || २ || चोसठ सहस वधु घणोए, पायक संख्या न पार ॥ रुपविजय कहे साहेबा, तृतये मुज तार ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ बीजु ॥
||लब' सत्तम सुरभव तजी, गजपुर नयर निवास ॥ राक्षसगण कृतिका जनि, कुंथुनाथ षराशि || १ || शोल वरस छद्मस्थमां, जिनवर योनि छाग || घातिकर्म घातें करो, तिलक तले वीतराग ॥२॥ शैलेसी करणे करीए, एकसहस परिवार || शिव मंदिर सिधावतां, वीर घणुं हुंशीयार || ३ || इति ॥
१ सर्वार्थसिद्धना देव.
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