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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०२ ) न दुश्मन दावन फावत, तुम्ह सुरतीयां भारीरे ॥ म्हारो० ॥५॥ अनुभव नयणे जिम जिम जोवत, प्रगट न पतीयां अरीभारीरे ॥ म्हारो० || ६ || गति छति थिति भगत वसुधाता, धारत न 'भत्तोया भारीरे ॥ म्हारो० || ७ || ज्ञानविमल गुण उदय अहोनिश, होवत ' नतिया सारीरे ॥ म्हारो० ॥ ८ ॥ इति ॥ || श्री साधारण जिन स्तवन ॥ ॥ कनक कमल पगलां ठप - ए देशी ॥ ॥ श्री जिनवर ने वंदनाए, करता लाभ अनंत तो ॥ स्वामि सोहामणाए ॥ भव भयनां दुःख भांजवार, समरथ तुमे गुणवंततो ॥ स्वामि० ॥ तारक तुम सम कोइ, न दीठो भूतलेए | ए आंकणी ॥ १ ॥ तुमे उपकार घणा कर्याए, कहेतां नावे पारतो || स्वामि०॥ आ संसार बिहामणी ए, उतारों तस पार तो ॥ स्वामि० ॥ २ ॥ जाण कने शुं याचीए ए, जे जाणे विण को वाततो || स्वामि० ॥ पण एम कहे माया विनाए, नवि पीरसे निज मात तो || स्वामि० || ३ || ते माटे हुं विनवुं ए, आपो तुम पद सेवतो || स्वामि० ॥ ढील किशी करो एवडीए, दायक छो स्वयमेव तो ॥ स्वामि० ॥४॥ ज्ञानविमल सुख संपदाए, शुभ अनुबंधी जाणतो ॥ स्वामि० ॥ अधिक हुवे हवे आजथीए, प्रभु तुम वचन प्रमाण तो ॥ स्वापि०॥ ॥ ५ ॥ इति ॥ १ भक्ति. २ नमस्कार. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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