SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०३) ॥ श्री साधारण जिन स्तवन॥ ॥ संभव जिन अवधारीये-ए देशी॥ ॥ निस्नेही शुं नेहलो, काइ कीयो केणीपेरे जाय हे मित्त ॥ एक पाखो केम कीजते, कांइ जनमां हांसी थाय हे चित्त ॥ कांइ जाणे क्युं बनी आवहि, कांइ त्रिभुवन जननो नाथ हे चित्त ॥ कांइ मुगति पुरीनो साथ हे मित ॥ कांइ जाणे० ॥१॥ए आंकणी॥ लौकिक गुण गणजो होवे, तो रसनाए कह्या जाय हे चित ॥ पण लोकोत्तर गुणवंत छो, किम ते वर्ण न थाय हे मित्त ॥ कांइ० ॥२॥ तरोये लघु नदी वाह्यशृं, कांइ स्वयंभू रमण न तराय हे चित्त ॥ लघु नंग होय तो तोळीए, कांड मेरु न तोल्यो जाय हे मित ॥ कांइ० ॥३॥ यद्यपि सुरनी सानिधे, कांइ ते पण सोहिलं थाय हे चित्त ॥ पण प्रभु गुण अनंत अनंत छे, कांइ ते केम बोल्या जाय हे मित्त ॥ कांइ०॥ ४ ॥ ज्ञानकला तेहवी नहि, कांइ संयम शुद्ध न थाय हे चित ॥ संघयणादिक दोषनो, कांइ अंतर बहु एम थाय हे मित ॥ कांइ०॥ ५॥ पण तुन भक्ति रीझशे, कांइ मुक्ति खेंचाने तेणहो चित्त ॥ चमक उपल जिम लोहने, काइ कुमुदने चंद महेण हे मित ॥ कांइ० ॥६॥ एवू जाणी बनी आवेलोने, नेक नजरशुं. निरखतां, कांइ तुमशु लागे दाम हे चित्त॥ ज्ञानविमल चढती कळा, कांइ वाधे जगे जश माम हे मित ॥ कोइ० ॥७॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy