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( २०१ ) आय खडे तुम पाय ॥ मेरे दिल आय वसो ॥१॥ दास सभाव करी जो देवो, तो भव भवनां दुःख जाय ।। मेरे० ॥ २ ॥ दीन उद्धार धुरंधर तुम सम, अवर न को कहेवाय ॥ मेरे० ॥३॥ तुझ सम करुणा ठाम न कोइ, श्ये न करो सुपसाय ॥ मेरे० ॥ ॥४॥ देतां दाम न बेसे कांइ, उणीम काइ न थाय ॥ भेरै० ॥ ॥५॥ जे जेहना ते तेहना आखर, जिहां तिहां चित न बंधाय ॥ मेरे० ॥ ६॥ पग कावे एक साचे बोले, सुणी मनमां सुख थाय ॥ मेरे० ॥ ७॥ माहरे छे ते प्रगट करतां, प्रभु तुज नाम मु. हाय ।। मेरे० ॥ ८ ॥ ज्ञानविमल प्रभुस्युं इम विनति, करतां पाप पलाय ॥ मेरे ॥ ९॥ अनुभव लीला सुंदरी सहेजे, धाइ मिले गले आय ॥ मेरे० ॥ १० ॥ इति ।।
॥श्री साधारण जिन स्तवन । ॥ चंद्राप्रभुजीसे ध्यानरे मोरी लागी लगनवा-ए देशी ॥
॥ लग गइ अबीयां मेरीरे, म्हारो नाथजी जागे ॥ पेखी मूरतियां तेरीरे ॥ म्हारो० ए आंकणी ॥ प्रभु गुणनंदन वनहनि कुंजमां, खेलत चेतना प्यारी॥ म्हारो० ॥१॥'विकसित कज परे होवत छतीयां, प्रसरति मन सुख कारीरे॥ म्हारो० ॥२॥ रोम रोम तनु कंचुक उल्लसित,निकसित भ्रांति विचारीरे म्हारो॥३॥रसना गुण पार न पावत, करत विनतीयां धारीरे ॥ म्हारो० ॥४॥ रहत
१ विकस्वर कमलनी परे. २ जीभ.
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