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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२००) सेवीए रे, पाप पटल सवि जाय स० ॥ ४ ॥ काउसगध्याने प्रभु रह्या रे, मांडयुं कर्मशुं युद्ध स०; सवि उपसर्ग हावीआ रे, शिव सुंदरीशुं लुब्ध स० ॥ जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम लहे बहु मान स० ॥ ५॥ क्रोड देव सेवा करे रे, जळनिधि रंग तरोल स०, मुज मन मंदिर दीपशुं रे, करता रंग झकोल स० ॥जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम पूजनिक थाय स० ॥ ६॥ खडां खडां केवळ लया रे, शिवरामाना कंत स०: समवसरण देवे रच्यु रे, देशना सुणी हरखंत स० ।। जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम धर्म सनेह स० ॥ ७ ॥ चार अघाती क्षये करी रे, पाम्या भवनो पार स०: राग द्वेषे करी हुंचीओ रे, कृपा करी मुज तार स० ॥ जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम वंछित थाय स० ॥ ८॥ हुं फंदी मोहे पीडीओ रे, मोह निद्रामांहे सुप्त स०: परमेश्वर सन्मुख जुओ रे, हुं मागुं तुम हेत स० ।। जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम देव हजुर स० ॥९॥ श्री गुरु क्षेमना शासनने रे, जे सेवे ते धन्य स०: तस विनय करी वीनवे रे, हर्ष धरी एक मन स० ॥ जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम सुख विशेष स० ॥१०॥ ॥ श्री साधारण जिन स्तवन ॥ ॥ भलाजी मेरो नेम चल्यो गीरनार-ए देशी ॥ मेरे दिल आय वसो, माहरी अरज सुणो जिनराज ॥ मेरे दिल आय वसो ॥ ए आंकणी ॥ सकल मुरासुर नर विद्याधर, For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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