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॥ बी. ॥ ॥ अजित अयोध्यानो घणो, गज लर्छन गाजे ॥ जीतशत्रु विजया तणो, मुत अधिक दीवाजे ॥१॥ साडाचारशे धनुष्य देह, इमवरण बीराजे ॥ बहोतेर लाख पूर्व आयु, त्रिभुवन पति छाजे।। ॥२॥ समेतशिखर अणसण करीए, पहोत्या मुक्ति मोझार ॥ पविजय कहे साहीवा, आवागमन निवार ॥ ३ ॥ इति ॥
॥श्री संभवनाथजानु चैत्यवंदन ॥ ॥संभवनाथ सदा जयो, मन पंछीव पुरे । हय लैंछन हेम वरण देह, लेख दुरे ॥ १ ॥ राय जीतारी कुळ तिको, सावथ्यी राया ।। सेना माता जनमीयो, जंग सुजश गवाया ॥२॥ धनुष चारशे देहडीए, शाठ लाख पूर्व आय ॥ श्री विनय विजय अवझायनो, रुप नमे नीत पाय ॥ ३॥इति ॥
॥ बीजु, ॥ ॥ सत्तमगेविज चवन छे, जनम्या मृगशिर माहिं ।। देवगणे संभव जिना, नमीये नित्य उत्साहि ॥१॥ सावथ्यी पुरी राजीयो, मिथुन राशि सुखकार ॥ पन्नाग योनि पामिया, योनि निवारण हार ॥२॥ चौद वरस छद्मस्थमाए, नाण शाल तरु सार ।। सहस व्रतोशुं शिव वर्या, वोर जगत आधार ।। ३ ।। इति ॥
॥श्री अभिनंदन जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ चव्या जयंत विमानथी, अभिनंदन जिनचद ॥ पुनर्वसुमा
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