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( ४७ ) अथ सर्व जिननु चैत्यवंदन. ॥ श्रोसोमंधर प्रमुख नमु, विहरमान जिन वीश ।। ऋषभादिक वली बंदोये, संपइ जिन चोवीश ॥ १॥ सिद्धाचल गिरनार आबु, अष्टापद वलो गर ॥ समेत शिखर ए पंच तोरथ, पंचम गति दातार ।। २ ॥ उर्ध्व लोकें जिनवर नमुं, ते चौरासी लाख ।। सहस सत्ताणुं उपरें, त्रेवीश जिनवर भांख ।। ३ ।। एकशो बावन कोड वली, लाख चोराणुं सार ।। सहस चुमालीश सातशे, शाठ जिन पडिमा उदार ।। ४ ।। अधेोलेोके जिनभवन नभु, सात कोड बहतिर लाख ॥ तेरशे कोड नेव्यासी कोड, शाठ लाख चित राख ॥५॥ व्यंतर ज्योतिषीमां वली, ए जिनभुवन अपार ॥ ते भवि नित वंदन करो, जेम पामा भवपार ॥ ६ ॥ तीर्छ लोके शाश्वतां, श्री जिनभुवन विशाल ॥ बत्रीशे ने ओगणसाठ, वंदु थइ उजमाल ॥ ७॥ लाख त्रण'एक.[ सहस, त्रणशे वीश मनोहार ॥ जिन पडिमा ए शाश्वती, नित्य नित्य करूं जुहार ॥ ८ ॥ त्रण भुवन आहे वली ए, नामादिक जिन सार ॥ सिद्ध अनंता दिए, महोदय बद दातार ॥ ९॥ इति ॥
श्री चोविश जिन लंबन चैत्यवंदन ॥ ।। ऋषभलंछन ऋषभदेव, अजितलंछन हाथी ॥ संभव लंछन घोडलो, शिवपुरनो साथी ॥ १॥ अभिनंदन लंछन कपि, कोष छन सुमति ॥ पालेछन पद्मप्रभु, विश्वदेवा मुमति ॥२॥ मुपार्थ
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