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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६ ) गच्छपति गणधीरे || २ || जिनशासन सोभा करुए. कीर्ति विजय कहे सीस || वीनय विजय कहे वीरने चरणे नातुं सीस ॥ ३ ॥ इति पजुमण चैत्यवंदन संपूर्ण ॥ ॥ अथ वीस विहरमाननुं चैत्यवंदन ॥ पहेला श्रीमंधर नमो, बीजा जुगमंधर || बाहुजिन त्रिजा जमो, सुबाहु सुखकर ॥ १ ॥ सुजात जीन पंचमा, स्वयंप्रभु जिन छठा || रूपभानन जिन सातमा, अनंतवीरज जिन दीठा ॥२॥ सुप्रभु नवमा नमो, दशमा देवविसाल || वज्रेवर जिन इग्यारमा, चंद्रानन दयाल || ३ || चंद्रबाहु जिन तेरमा, चउदमा भुजंगनाथ ॥ इश्वरस्वामी परमा, नेमी प्रभुनो करो साथ ॥ ४ ॥ वीरसेन जिन सतरमा महाभद जिनराज || देवजसा ओगणीसमा, अजितवीरज महाराज || ५ || जंबूद्वीपे च्यार जिन, धातकीखंडे आठ ॥ पुष्क राठ जिन, नमतां होय नित ठाठ || ६ || ए वीसे जिन वंदीए, विहरमान जगदोस || पूजेो णमो प्रेमभुं, घरो ध्यान निस दीस || ७ || धन ते देश नगर पुरी, जिहां विचरे जिनरोज || भवि जीवने प्रतिबोधता, सारे आतम काज ॥ ८ ॥ अनुभव रसमयि देशना, स्यादवाद समुदाय || सत्ता धर्म प्रकासता, दुरगति दुःख पलाय || ९ || जिन उत्तम पाद रूपनी ए, निस दिन करो सेवा || अमीकुमर एणीपरे भणे, मोक्ष तणां सुख ठेवा ||१०|| इवि For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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