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(४५) येए, कीजे जनम पवित्र ॥ जीव जतन करी सांभलो, प्रवचन वाणी पनित ॥ ३॥ (ोजु) कल्पतरु वर कल्पसूत्र, पूरे मनवंछित ।। कल्पधर ध्रुथी मुणो, श्री वीर चरित्र ॥ १॥ खत्री कुंडे नरपति, सिद्धारय राय ॥ राणी त्रिसला तणी कुखे,कंचन सम काय ॥२॥ पुष्पोतर विमानयी चवीए, उपना पून्य पवित्र ॥ चतुरा चौद सूपन बहे, उपजे विनय विनित ॥ ३॥ ( चोथु ) सुपनविध कहे सूत होस्य, त्रिभूवन सिणगार ॥ ते दिनथी रिबें वध्या, धन अखुट भंडार ॥ २ ॥ साढासात दिवस अधिक, जनम्या नवमासे ॥ सुरपसि करे मेरु मिखरे, उच्छव उल्लासें ॥ २॥ कुंकुम हाथा दोजोये ए, तोरण झाकझमाल ॥ हरखे वीर हुलरावीये, वांणी वनित रसाल ॥ ३ ॥ (पांचमुं) जिननी बहेन सुदर्सना, भाइ नंदिवर्द्धन ॥ परणी यसोदा पदमनी, वीर सकोमल रत्न ॥१॥ देह दान संवस्सरी, छेइ दिक्षा स्वामी । कर्म खपावी थया केवली. पंचमी गति पांमी ॥२॥दीवाली दीवस थकीए,संघ सकल मुभ रीत ॥ अठम करी तैलाधरे, मुणज्यो एकहि चित्त ॥३॥ ( छठं) पास जिणेसर नेमनाथ, समुद्रथी वैष्णुव सूणीये ॥ आदिसरना चरित्र, जिननां अंतर सुणीये ॥१॥ गौतमादीक थीरावली, सुद्ध समाचारी ।। पर्व दीन चौथे दिने, भाषा गणधारी ॥२॥ ज्ञान दर्शन चारित्र तप ए, जिनपरमें जिन चित्त ॥ जिन प्रतिमा जिन सारीखी, वंदु सदा वनित ॥ ३॥ ( सातमुं) पर्वराज संवच्छरी, दिनदिन मते सेवो ॥ श्लोक वारसे कल्पसूत्र, कीर मुनिनो मुणो ॥ १॥ परम पाटपर बार बोल, भाख्या गुरु हिरे ॥ संपति श्री विजय मानसूरी,
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