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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४) भवी प्राणी ॥ जैन धर्म आराधीये, समकित हित जाणी ॥२॥श्री जिनप्रतिमा पूजिये ए,कीजे जन्म पवित्र ॥ जीव जतन करी सांभळे, प्रवचन वाणि वनित ॥ ३॥ इति ॥ चोथु. ॥ वडा कल्प परव दिने, घरे कल्पने कावो ॥ राति जगा प्रमुखे करी, शासन ने सोभावो ॥१॥ हयगय सिणगारी कुमर, लावो गुरु पासे । वडा कल्प दिन सांपलो, वीर चरित्र उकासे ।। २ ॥ छठ द्वादश तप कीजीये, धरीये शुभ परिणाम ॥ स्वामीवच्छछ प्रभावना, पुजा अमिराम ॥ ३ ॥ जिन उत्तम गौतम प्रते, कहेजो एकवीस वार ॥ गुरु मुख पो भावमुं, मुणे तो पामे भवपार ॥ ४ ॥ इति ॥ पांचमुं. ॥श्री शेजुजो सिणगारहार, श्री आदि जिणंद । नाभिराया कुल चंद्रमा, मरुदेवी माय ॥ १॥ काश्यप गोत्र इखाग वंश, वि. निताना राय ॥ धनुष पांचसे देहमान, सोवन सम काय ॥ २॥ वृषभ लंछन धूर वंदियेए, संघ सकल मुभरीत ॥ अठाइधर आरा. धीयें, आगम वाणी वनीत ॥ ३ ॥ (बीजु) प्रणमुं श्री देवाधिदेव, जिनवर महावीर ॥ सुरनर सेव्यो सांतदांत, प्रभु साहस धीर ॥ १ ॥ परच पजूसण पुण्ययी, पामी भवी मांणी ॥ जैन प. रम आगघिय, समकित हित जांणी ॥२॥ श्री जिनप्रतिमा पूजी For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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