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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achana पढीयाली, सिद्धायिका देवी लटकाली, हरितामा चार भुजाली ॥ पुस्तक अभया जिमणे झाली, मातु लिंगने वीणा रसाली, बाम भुजा नहिं खाली॥ शुभगुरु गुण प्रभु ध्यान घटाली, अनुभव नेहशुं देती ताली, वीर वचन टंकशाली ॥ ४ ॥ इति ॥ श्री महावीर स्वामीनी स्तुति. गंधारे महावीर जिणंदा, जेने सेवे सुर नर इंदा, दीठे परमानंदा; चैत्र शुद तेरस दिन जाया, छपन दिक कुमरी गुण गाया, हरख घरी हुलराया; त्रीश वरस पाळी घरवास, मागशर बद दशमी व्रत जास, विचरे मन उल्लास; ए जिने सेवो हितकर जाणी, एहथी कहीए शिव पटराणी, पुण्य संणी ए खाणी ॥ १ ॥ ऋषभ जिनेवर तेर भव सार, चंद्र प्रभु भव आठ उदार, शांति कुमर भव वार; मुनिसुव्रत ने नेमकुमार, ते जिनना नव नव भक सार, देश भव पार्थकुमार; सत्तावीश भव वीरना कहीए, सेतर जिननां प्रण प्रण लहीए, जिन वचने सहीदए; चौवीश जिननी एह विचार, एहथी लहीए भवनो पार, नमतां जय जयकार ॥२॥ वैशाख शुद दशमी कही नाण, सिंहासन बेठा वधमान, उपदेश दे प्रधान; अग्नि खुणे हवे पर्षदा मुणीए, साध्वी वैमानिकली गणीए, मुनिवर त्यांहीज भणीए; यंतर ज्योतिषी भुवनति सार, एहने नेऋत खुणे अधिकार, वायव्य खुणे एहनी नार; इशाने शोभे नर नार, वैमानिक सुर पर्षदा पार, मुणे जिन For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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