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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०३) पूरव यकी वंदो,दोय चार अठ दश देव ॥ ए चार निक्षेपे, संभाळी करूं सेव ॥२॥ महावीर थकी त्रिपदी, पामीने तत्काळ ॥ द्वादशांगी गुंथी, गणघर देव रसाळ ॥ एमांथी उपदिशे, आठमनो अधिः कार ।। अष्ठमी आराधो, जिम पामो भव पार ॥३।। जिन शासन देवी, सिद्धायिका मातंग ॥ आठम तप तपीए, सांनिध्य करे धरी रंग ।। मुर समकित धारी, भविक करे कल्याण ॥ भाव विजयना वाचक, सेवक ज्युं भाम भाण ।। ४ ॥ ॥ एकादशीनी स्तुति ॥ दीन सकल मनोहर-ए देशी. गोपीपति पूछे, पभणे नेमि कुमार । इहां थोडे कोधे, लहीए पुण्य अपार ।। मृगशर अजवाळी, अग्यारश मुविचार । पासह विधि पाळी, बहु तरीए संसार. ॥१॥ कल्याणक हुवा, जिनना सो पचास । तस गुणगुं गणतां, पहेचे वांछित आश । इहां भाव धरीने, व्रत कीजे उपवास । पौन व्रत पाळी, छांडीजे भव पास ।। ॥ २ ॥ भगवंते भाख्यो, श्री सिद्धर्भात मोझार । अग्यारश महिमा, मृगशिर पख शुदी सार ।। सवि अतीत अनागत, वत्तमान मुवि. चार। जिनपति कल्याणक, छोडे पाप विकार ॥ ३ ॥ औरावण वाहन, सुरपति अति बलवंत । जिम जग जश गाजे, रमणीकांत इसंस ॥ तप सांनिध्य करजो, मौन अग्यारश संत । तप कीर्ति प्रसरे, शासन विनय करत ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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