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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४) शत आठे आगला, उतम ए गिरा नाम ॥ जघन्य एकवीश जा. णज्यो, करवा सुकृत काम ॥ १४ ।। सुरज कुंड सहायथो, नरपतो चंद. नरिंद ।। कुर्कट रुप मेटी करी, शोभा लही फुलचंद ।। १५ ।।. छहरी पाले जे समकिती, राखी मन एकतार ॥ नरक कुख गती. बारीने, शिवमुख कहे श्रीकार ॥ १६ ॥ अगसठ दोय अठम करी, ए मिरी फरसे आप ॥ सुर सुख पामे शास्वता, प्रगटे पुन्य पसाय ॥ १७ ॥ गौमुख जल चकेश्वरी, सदा करे जिन सेव ।। सानियः कारी संघने, दायक वंछीत देय ॥ १८ ॥ श्री सिद्धाचल सेवीये, आणी प्रेम अपार ॥ सदगुरु राज पपायथी, हंस नमे हितकार ॥ १९ ॥ इति । ॥ श्री गिरनारजोर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ नायक त्रिभुवन नाथजी, श्री नेमी निनसार || प्रमुपद. प्रेमे पूजीये, गोरुभोगढ गिरनार ॥ १॥ ए गिरी उपा एहना, तीन कल्याणक तास ॥ अरिहंत भगती अनुसरो, आणी मन उल्लास ॥ २ ॥ जादवकुल दिनकर जिस्यो, ब्रह्मचारी सरदार ॥ सतियां मांह: शीरोमणो, रुडी राजुल नार ॥३॥ सहसा वन संलम लीयो, गिरीपर केवलज्ञान ॥ पानाथ सरखी करी, भामनीने भगवान ॥४॥ साते टुंक सेाहामणी, ए तीरथ अहीराण ॥ पंचम टुंके श्री प्रभु, पाम्या पद निरवाण ॥५॥ गुणी अहारे गणधरा, गि. का बहु, गुणवंत ॥ सहस ,अटारे श्रमणने, सेवो भविनेन संव ॥६॥ आद भवानी अंबिका, ए तीरथ रखवाल ॥ सेवामी For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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