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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३ ) ॥श्री सिद्धाचलजीर्नु चैत्यवंदन ॥ । सकल तिर्थ शिर सेहरो, शेर्बुजा गिरी सोहे ॥ त्रिभुवन तारण तीर्यए, दीठां मन मोहे ॥१॥ए गिरी उपर आवीया, नियंकर त्रेवीश ॥ सदा नाम ए शास्वतो, नमिये ते निश दीश । ॥ २॥ बादि जिणंद समोसर्या, पूर्व नवाणुं चार ॥रायण तळे श्री ऋषभना, पद प्रणमो घरी प्यार ॥३॥ सदा नाम ए शाश्वतो, भांखे श्री भगवंत ।। जात्राजे जुगते करे, आवे सही भव अंत ॥ ॥ ४ ॥ पुंडरिक गणधर प्रमुख, मुगति गया मुनिराज | सिद्ध गिरी सेव्या थकी, कीयां वंछित काज ॥ ५॥ विमल वसी गुण वर्णव्यो, अनुपम सेल उद्धार ।। युगाधीश जिनराजने, सेवे सहु नरनार ॥ ६ ॥ राम वापण दोय पाल ए, प्रथम तीर्थ प्रवेश ॥ मोतीवशी प्रेमावशी, हेमावशी मुनी शेष ॥७॥ खरतर वशी छीपावशी, निरखी जे नितमेव ।। अदबुद स्वामी अती भला, दीठो अदभुत देव ॥ ८ ॥ नदी शेजो नाहीये, करीये निर्मल काय ॥ मापद पुंजे प्रेम शुं, जनम पाप मिट जाय ॥ ९॥ ए तीरयनी उपरे, ठावा तीरथ ठाम ॥ पछिम दिश पेसे। सही, रयण बिंब अमीराम ॥ १० ॥ उलखा डोली अती भली, नवण बिंव जल. नीर ॥ सोभाचंदन तलावडी, सुघरे कान शरीर ॥ ११ ॥ सिद्ध शिला पासे सही, शांति जिन चोमास ॥ साधु अनंता शिव लह्या बसोया शिवपद वास ॥१२॥ सिद्धवडे साधु वडा, जप तप करता माण | करम कठण मेटी करी, निश्चे पद निरवांण ॥ १३ ॥ एक For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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