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( ९१ ) ॥ श्री विमल जिन स्तुति ॥
॥चौपाइनी चाल ॥ ॥ विश्लनाथ विमल गुण वरया, जिनपद भोगी भव निस्तरया ॥ वाणी पांत्रीश गुण लक्षणी, छम्मुह मुर प्रवरा जक्षणी॥१॥ ॥ श्री अनंतनाथ जिन स्तुति ॥
॥ वसंततिलका वृत्तम् ॥ ॥ ज्ञानादिकाः गुणवरा निवसंनते, वजी मुपर्वहिते जिनपादप ॥ ग्रंथाणवे मतिवराः प्रणतिस्म भफत्या, पाताळचांकुशि सूरी शुभवीर दक्षाः॥१॥ इति ॥
॥ श्री धर्मनाथ जिन स्तुति ॥
॥शंखेश्वर पासजी पूजीए ॥ ए देशी ।। ॥ सखि धर्म जिणेसर पूजीए, जिन पूजे मोहने धूनीए । प्रभु बयण सुधारस पीजीए, किन्नर कंदर्पा रीजीए ॥१॥ इति।।
॥ श्री कुंथुनाथ जिन स्तुति ॥ ॥वशी कुंथु व्रती तिलका जगति, महिमा महती नत इंद्र. तती ॥ प्रथितागम ज्ञानगुणा विमला, शुभवीर मतां गांधरक बाला ॥१॥ इति ॥
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