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(१९२)
कामकुंभ जिम कामित पूरे, कुंभलंछन जिन मुख गमे ।म० ॥२॥ मिथिलानयरी जनम प्रभुको, दर्शन देखत दुःख शमे ॥ म० ॥३॥ घेवरभोजन सरसां प्रीस्यां, कुकस बाकस कौण जिमे ॥ म० ॥४॥ नील वरण प्रभु कांतिके आगे, मरकति मणि छवि दूर भौ ॥ म० ॥५॥ न्यायसागर प्रभु जगनो पामी, हरि हर ब्रह्मा कौण नमे ॥ म०॥६॥
॥श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ।। ॥ घोडी ता आइ थांरा देशमे मारुजी-र देशी ॥
॥ मुनिसुव्रत शुं मोहनी ॥ साहिबजी ॥ लागी मुज मन जोर हो ॥ शामलडी मरती मन मोहियो साहिबजी ॥ व्हालपणुं प्रभुथी सहि ॥ साहिबजी ॥ कलेजानी कोरहो ॥ शाम ॥१॥ अमने पूरण पारखं ॥ सा०॥ ए प्रभु अंगीकार हो ॥ शाम० ॥ देखी दिल बदले नहि ॥ सा०॥ अमचा दोष हजार हो ।। शाम० ॥२॥ निरगुण पण बांहि ग्रह्या ॥ सा० ॥ गिरुआ छेडे केमहो ॥शाम०॥ विषधर काळा कंठमे ॥ सा० ॥ राखे इश्वर जेम हो । शाम ॥३॥ गिरुआ साथे गोठडी ॥ सा० ॥ ते तो गुणनो हेतही ॥ शाम०॥ करे चंदन निज सारिखो ॥ सा० ॥ जिम तरुअरनो खेतहो । शाम० ॥ ४॥ ज्ञानदशा परगट थइ ॥ सा० ॥ मुज घट मिलियो इश हो। शाम ॥ विमल विनय उवज्झायनो ॥सा०॥ राम कहे शुभ शिष्य हो ॥ शाम० ॥ ५॥ इति ।।
१ मनकामना, २ बहुज.२ अमारा. ३ काळा नागने. ४ महादेव.
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