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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३३) शिखर सुहावना रे ॥ गिरि०॥६॥ भरत भूपतिके विरचित गिरितट, पालीताणुं नयर देखाउना रे॥ गिरि० ॥ ७॥ ज्ञानविमल प्रभु ध्यान करतथे, परमानंद 'पद पाउना रे ॥ गिरि०॥८॥ इति ॥ ॥स्तवन बीजं ॥ ॥ लावो लावोने राज मूंघा मूला मोती-ए देशी॥ ॥ मोरा आतमराम कुण दिने शेर्जेजे जाशुं ॥ शेर्बुजा केरी पाजे चढतां, ऋषभ तणा गुग गाशुं ॥ मोरा० ॥१॥ ए गिरिवरनो महिमा निमुणी, हैयडे समकित वाश्यु ॥ जिनवरभाव सहित पूजीने, भवे भवे निर्मळ थाशुं ॥ मोरा०॥२॥ मन वच काया निर्मळ करीने, सुरज कुंडे न्हाशुं ॥ मरुदेवीनो नंदन निरखी, पातिक दुरे पलाश्युं॥ मोरा०॥३॥ इणि गिरि सिद्ध अनंता हुवा, ध्यान सदा तस ध्यारों, सकल जन्ममा ए मानव भव, लेखे करीय सराशुं ॥ मोरा० ॥४॥ सुरनर पूजित प्रभु पदकज रज, निलवटे तिलक चढाशु॥ मनमा हरखी डुंगर फरसी, हैयडे हरखित थाश्यु :॥ मोरा०॥५॥ समकित धारी स्वामि साथे, सदगुरू समकित लाशुं॥ छहरी पाळी पाप पखाळी, दुरगति दुरे दलाश्युं ॥मोरा०॥६॥श्री जिन नामी समकित पामी, लेखे त्यारे गगाश्युं ॥ ज्ञान विमल मूरि कहे धन धन ते दिन, परमानंद पद पाशुं ॥ मोरा०॥७॥इति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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