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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३०) ॥ स्तवन त्रीजुं॥ ॥ साहिब सांभळो रे, संभव अरज हमारी-ए देशी ॥ ॥श्री सीमंधरु रे, मारा प्राण तणा आधार ॥ जिनवर जय करु रे, जेहना झाझा छे उपगार ॥क्षण क्षण सांभरे रे, एक श्वास मांहि सोवार॥ किमही न विसरे रे, जे वसीया छे हृदय मोझार ॥ श्री सीमंध० ॥१॥ हुँसी हियडले रे, जिम होय मुक्ता फलनो हार ॥ ते तो जाणीये रे, ए सवि बाहिरनो शणगार ॥ प्रभु तो अभ्यंतरे रे, अलगा न रहे लगार ॥ अहनिश वंदणा रे, करीये छीये ते अवधार ॥श्री सी० ॥२॥ नयन मेलावडो रे, निरखी सेवकने संभाळ ॥ तो हुँ लेख रे, म्हारो सफळ सफळ अवतार ॥ नहि कोइ तेहयो रे, विद्या लब्धिनो उपाय ॥ आवीने मलं रे, चरण ग्रहुं हुं वळी धाय ॥ श्री सी० ॥ ३ ॥ मळवू दोहिल्लु रे, तेहशुं नेह तणो जे लाग ॥ करतां सोहिल रे, पण पछे विरहनो विभाग ।। चंद चकोरने रे, के चकवा दिनकर ते होइ जेम ॥ दूरे रह्या थकी रे, पण तस वधता छे प्रेम ॥ श्री सि०॥ ४॥ पण तिहां एक के रे, कारण नजरनो संबंध ॥ विरहे ते नहीं रे, ए मन मोटा छ रे धंध ॥ पण एक आशरो रे, सुगुणशुं जे रे एक तान ॥ तेहथी वाधशे रे, ज्ञानविमल गुणनो जस मान॥श्री सी०॥५॥ इति॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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