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( ६९ ) जयकरं ॥ कहे० ॥ ५॥ श्रीयलंब चारित्रनिधि जिन प्रशमराजित ध्याइए, स्वामोश्री विपरीतदेव अहोनीश प्रसाद प्रेमे गाइए । अघटितज्ञानो ब्रह्मेद्र प्रभु ऋषभचंद्रनो अघहर ॥ कहे० ॥ ६॥ दयांत दाता जगत केरो अभिनंदन रत्नेशए, सामकोष्ट मरुदेव नायक अतिपाप विशेषए ॥ नमो नदिषेण व्रतधर श्रीनिर्वाणो दुःखहरं ॥ कहे० ॥ ७ ॥ सौंदर्यज्ञानी त्रिविक्रम जिन नारसिंह नमो तुमे, खेमंत संतोषित अरीहा कामनाथथी दुःख समे ।। मुनिनाथने श्रीचंद्रदाहए दिलादित उदयकरं ॥ कहे० ॥ ८॥ श्री. अष्टाहिक वाणिग वंदो उदयज्ञान आराधिये, तमोकंदने सायकाक्ष स्वामीखेमंत शिवमुख साधिये । निर्वाणीने रविराज साहिब प्रथम नाथ परमेश्वरं । कहे ॥ ९॥ श्री परुरचास अवबोध जगगुरु विक्रमेंद्र वखाणीये, श्रीस्वसाति हरिनंदिकेशने महामृगेंद्र मन आ. जीए ॥ अशोकचित चित्तमां बसे अहनोश धर्मेंद्र जगजम कर ॥ कहे० ॥ १०॥ अश्ववंद कुटिलक वर्तमान नंदिकेशना गुणघणा, श्रीधर्मचंद्र विवेक जगपति कलापक सोहामणा ॥ विसोम सौम्याकृति जेनी आरणअंगि मुखकरं ॥ कहे० ॥ ११ ॥ त्रीस चोवीसी दशे खेत्रे कालत्रिक जिन लीजीए, पंचकल्याणक त्रोस जिननां इम दोढसो गुणोजोए । जिनभक्ति करतां ध्यान धरता काटि तप फळ होइनरं ।। कहे ॥१२॥ पोषधने उपवास करोने आराधे एकादशो नरभव तेहनो सफल थाये परमानंद पद देहसी ।। गुरु रुपकीति हृदय धरीने माणेक मुनि शिव सुखकरं ॥ कहे० ॥ १३ ।। इति मौन एकादशी दोढसो कल्याणक नामर्नु चैत्यवंदन संपूर्णम् ॥
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