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योनी जगदिश ।।मोहराय संग्राममा, वरम गयां छवीश ॥२॥ जीत्यो भियंगु तलेए, सहस मुनि परिवार ।। अविनाशी पदवी वर्या, वीर नमे सोवार ॥ ३॥ इति ।।
॥श्री पद्मप्रचजिन चैत्यवंदन ॥
॥ अवेयक नवमा थकी, कोसंबो घरवास ॥ राक्षस गण नक्षतरु, चित्रा कन्या राशि ॥१॥ वृश्चिक योनि पद्मप्रभु, छदमस्था षट्मास । तरु छत्रौधे केवली, लोका छोक प्रकाश ॥२॥ त्रण अधिक शत पाठशुं ए, पाम्या अविचछ धाम ॥ वीर कहे प्रभु माहरे, गुण श्रेणी विश्राम ॥ ३ इति ॥
॥ बोजु.॥ ॥ पद्मप्रभ छहा जयो, वरणे प्रभु रातो ॥ धरराय कौशंबी धणी, सुशीमा जश माता ॥१॥ कमळ लछन अढीसें धनुष, शिव संपती दाता॥ोशाख पूर्व आय, त्रिभुवननो त्राता ॥२॥ चातोश अतिशय वीराजताए, सेवे मुरनर कोड ॥ श्री विनय विजय उव. झायनो, रूप नमे कर जोड ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ श्री सुपार्श्वनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ जगतारण जीन सातमो, प्रतीष्ट रायानंद ॥ पृथ्वी माता उरे धर्यो, मुख पुनमचंद ॥१॥ वीश लाख पूर्व आयु, वशे धनुष तनु दीपे ॥ स्वस्तिक उंछन श्री सुपास, अरोयणने पीपे ॥२॥
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