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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११०) डरेरी ॥१॥ टाले मिथ्या दोष,समकित पोष करेरी ।। भवि कमल पडिबोह, दुरगति दुर हरेरी ॥ २ ॥ त्रिगडे त्रिभुवन स्वामी, घेसी घरम कहेरी । शांति सुधारस वाण, सुणतां तत्व ग्रहेरी ॥ ३॥ क्रोधादिकनो त्याग, समता संग सजोरी ! मन आणी स्यादवाद, अव्रती ताम तजोरी ॥ ४ ॥ अनुभव चारित्र ग्यान, जीनाणा पर घरोरी ॥ अक्षय सुखनुं ध्यान, करी भवजलधि तरोरी ॥५॥ रक्त वरण तनु कान्ति,वरणरहित थयारी॥ अजर अमर निरुपाधी, लोकांतिक रखोरी ॥ ६ ॥ निरागी पभु सेव, त्रिकरण जेह करेरी ॥ जिन उत्तमनी आण, रतन तो शिर धरेरी ॥७॥ ॥ श्री सुपार्श्वनाथस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥ साहेलडीआंनी देशी ।। पृथ्वी सुत परमेसरु॥साहेलडीआं। सातमा देव सुपास ॥ गुण वेलडीआं । भव भय भाषठ मंजणा ॥सा० ॥ पुरतो विश्वनी आश ॥ गु० ॥ १ ॥ सुरमणी सुरतरु सारीखो ॥ सा० ॥ काम कुंभ सम ह ॥ जगु० ॥ तेहयी अधिकतरतुं प्रभु ॥ सा० ॥ तेहमां नहीं संदेह ॥ गु० ॥२॥ नाम गोत्र बस सांभले ॥ सा० ॥ महा नीजरा थाय ॥ गु० ॥ रसना पावन स्वपन यकी ॥ सा० ॥ भव भवनों दुःख जाय ॥ गु० ॥३॥ विषय कषाये जे रता ॥ सा० ॥ हरिहरादि देव ॥ गु० ॥ तेह चिच मांहि नवि घर ॥ सा० ॥न करुं तेहनी सेव ॥ गु० ॥४॥ परम पुरुष परमातमा ।। सा० ॥ परमानंद स्वरूप ॥२०॥ ध्यान For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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