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(१६६) पाप प्रभु ध्यानथी 'उपशमो, वीशमो चित्त शुभ जापरे ॥ ० ॥१॥ राय सुग्रीव रामा सुतो, नयरी काकंदी अवताररे ॥ मच्छ लछन घरे आउखु, लाख दोइ पूर्व निरधाररे ॥ सु० ॥२॥ एक शत धनुष तनु उच्चता, व्रत लिए सहस परिवाररे । समेतशिखर शिवाद लहें, फटिक सम कांति विस्ताररे ॥ सु० ॥३॥ लाख दोइ साधु प्रभुजीतणा, लाख एक सहस वली वीशरे ।। साहुणी चरणगुण धारिणी, एह परिवार जगदीशरे ।। सु० ॥४॥ अजिन मुर वर सुतारा मुरी, नित करे प्रभुतणी सेवरे ।। श्रीनयविजय बुध शिष्यनें, चरण ए स्वामि चित्त भेवरे ॥ सु०॥५॥
श्रीशीतलनाथ जिन स्तवन । . ( कपूर होइ अति ऊजलं रे, ए देशी) शीतल जिन भदिलपुरीरे, हरय नंदा मात ॥ नेउ धनुष तनु उच्चताजी, सोवन वान विख्यातरे ॥ जिनजी तुजश्थु मुन मन नेह, जिम 'चातकने मेहरे, तुं छे गुणमगि गेहरे ॥ जि० तु. T?॥ श्रीवत्स लंछन सोहतोजी, आयु पूरव लख एक ॥ एक सहसयुं व्रत लीयेंनी, आणी हृदय विवेकरै । जि० तु० ॥२॥ समेतशिखर शुभ ध्यानथीजी, पाम्या परमानंद ॥ एक लख घट साहुणीजी, एक लाख मुनि वृंदरे ॥ जि० तु० ॥३॥ सावधान
१ नाश याओ. २ पंडित. ३ बपैयो.
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