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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६१) शी. . मु० ॥ अ०॥२॥ बोहोतेर लाख पूरव धरेरे लो, आउखुं सोवन वानरे सु० ॥ लाख एक प्रभुजीतणारे लो, मुनि परिवारनुं मानरे सु० ॥ अ० ॥ ३॥ लाख ऋण भली 'संयतीरे लो, ऊपर त्रीश हजाररे मु० ॥ समेत शिखर शिवपद लहीरै लो, पाम्या भवनो पाररे सु० ॥ अ०॥४॥ अजितबला शासनसुरीरे लो, महायक्ष करे सेवरै मु०॥ कवि जशविजय कहे सदारे लो, ध्याउं ए जिनदेवरे तु०॥ अ० ५॥ श्रीसंभवनाथ जिन स्तवन । (महाविदेह क्षेत्र सोहामणुं, ए देशी) माता सेना जेहनी, तात जितारी उदार लालरे ॥ हेम वरण हय लंछनो, सावथी शिणगार लालरे ।। संभव भवभय भंजणो ॥१॥ सहस पुरुषशुं व्रत लिये, च्यारसें धनुष तनु मान लालरे । साठ लाख पूरव धरें, आउखु सुगुण निधान गलरे । ॥ सं० ॥ २॥ दोइ लाख मुनिवर भला, प्रभुजीनो परिवार ला. लरे ॥ त्रण लाख वर संयती, ऊपर छत्रीश हजार लालरे ॥ सं० ॥३॥ समेतशिखर शिव पद लहूं, तिहां करे महोच्छव देव लालरे ॥ दुरितारी शासनसुरी, त्रिमुख यक्ष करे सेव लालरे॥ सं०॥४॥ तुं माता तुं मुज पिता, तुं बंधव 'त्रण काल लालरे ॥ श्रीनयविजय विबुध तणो, शिष्य कहे दुख टाल लालरे ॥सं०॥॥ १ साध्वीओ. २ हजार. ३ शरीरनुं प्रमाण- ४ श्रेष्ट. ५ भूत भविष्य वर्तमान. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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