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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३०) अथवा नकामुं आप पासे नाथ शुं बक, घणुं ?। है देवताना पूज्य ! आ चारित्र मुज पोतातणुं ॥ जाणो स्वरुप त्रण लोकनुं तो म्हारुं शुं मात्र आ । ज्यां क्रोडनो हिसाब नहि त्यां पाइनी तो वात क्या ? ॥२४॥ हाराथी न समर्थ अन्य दीननो उद्धारनारो प्रभु । म्हाराथी नहि अन्यपात्र जगमा जोतां जडे हे विभु !॥ मुक्ति मंगळस्थान ! तोय मुजने इच्छा न लक्ष्मी तगी। आपो सम्यगरत्न श्याम जीवने तो तृप्ति थाये घणी ॥२६॥ ॥१॥ आदिजिन आरती ॥ पहेली आरती प्रथम जिणंदा, शेर्बुजा मंडण ऋषभ जिणंदा ॥ आरती कीजे जिनराज तुमारी ॥१॥ दुसरी आरसी मारू देवी माता, युगला धर्म निवार करंदा. ॥ आ.२॥ वीसरी आरती त्रिभुवन मोहे,रत्न सिंघासण मारा प्रभुजीने सोहे।आ.३ चोथी आरती नित्य नवी पूजा,देव निरंजन अवर न दुजा ॥आ.॥४॥ पांचमी आरति प्रभुजीने भावे,प्रभुजीना गुण सेवक इम गावे|आ.५इति ॥२॥ श्री वर्द्धमानजिन आरति. श्री सरस्वती माइ, कृषा करो आइ; सरस वचन सुखदाइ, यो मुज चतुराइ-जय देव, जय देव १ श्रीवर्द्धमान देवा,जगमा नहि एवा;पातक दूर करैवा,करे इंद्र सेवा.जय०२ रत्नत्रयराया,त्रिशलाना जाया;सिद्धास्थ कुळ आया,कंचनमय काया.ज.३ शासन बहु सारो,लागे मुज प्यारो;संकट दूर निवारो,भवसायर तारो.४ त्रिभुवन तुम स्वामी,कर्म मेल वामी;केवलज्ञान सुपामी,शिवपुरनास्वामी५ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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