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(१६८)
श्री वासुपूज्य जिन स्तवन.
(ऋषभनो वंश रयणायरु, ए देशी ) श्रीवसुपूज्य नरेसरू, तात जया जस मातारे ॥
लंछन 'महिष सोहामणो, वरणे प्रभु अति रातारे । गाइयें जिन गुण गहगही ॥ १॥ श्रीवासुपूज्य जिणेसरु, चंपापुरी अव. तार ॥ वरष बोतेर लाख आउखु, सत्तरि धनु तनु साररे ॥गा०॥ २॥ षट शत साथे संजम लिये, चंपापुरी शिवगामीरे ॥ सहस बहोत्तर प्रभुतणा, नमियें मुनि शिर नामीरे ॥गा०॥३।। तप जप संयम गुण भरी, साहुणी लाख वखाणीरे ॥ यक्ष कुमार सेवा करे, चंडा देवीमां जाणीरे ॥ गा० ॥ ४ ॥ जनमन कामित सुरमणी, भवदव मेह समानरे॥कत्री जशविजय कहे सदा, हृदय कमल धरो ध्यानरे ॥ गा० ॥५॥
श्रीविमलनाथ जिन स्तवन । .. सजनी विभल जिनेसर पूजीये, लेइ केसर घोलाघोल ॥ सजनी भगति भावना भावियें, जिम होइ घरे रंग रोल ॥ सजनी विमल जिनेसर पूजीयें ॥१॥ स० ॥ कंपिलपुर कृतवर्मनो, नंदन श्यामाजात ॥ स० । अंक वराह विराजतो, जेहना शुचि अवदात ।। स० वि० ॥ २॥ स० साठ धनुष तनु उच्चता, वरस साठ
१. पाडो. २. सूअर लंछन. ३. निर्मळ.
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