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(१०) जातां यां, चंपा तर विश्राम ॥ १॥ अषयोनि गण राक्षस, शतभिषा कुंभराशि ॥ पाडल हेठे केवलो, मौनपणे इगवासि ॥२॥ पटशत साथै शिव थयाए, वासुपूज्य जिनराज ॥ वीर कहे धन्य ते घडो, जब निरख्या महाराज ॥ ३ ॥ इति ॥
॥बीजु.॥ ॥ देवलोकथी दीपती, नयरी वर चंपा ॥ वासुपूज्य जिन जन्म ठाम, वसे लोक सुसंपा ॥ १॥ वमुपूज राजा राजीया, जया जस पटराणी ॥ सीतेर धनुष वर देह राती, महीप लंछन नाणी ॥२॥ वरस बहोतेर लाखनुए, आयु कहे जगनाथ ॥ रुफ विजय कहे मुन मल्यो, शीव मार्गनेो साथ ॥ ३ ॥ इति ॥
श्री विमलनाथजीनु चैत्यवंदन ॥ ॥ वंदो विमल जोनंद चंद, मुख संपति दाता ॥ कंपीमपुर कृतवर्मराय, श्यामा जश माता ॥ १ ॥ साठ धनुष वर देहमान, दीपे विख्याता ॥ सोवन वान विराजता. गुण सुर नर गाता ॥२॥ साठ वरस कख आउखुए, शुकर लंछन पाय ॥ श्री विनयविजय अवझायना, रूपविजय गुण गाय ॥ ३ ॥ इति ।
॥ बीजु.॥ ॥ अष्टम स्वर्गयकी चवी, कंपीलपुरमा वास ॥ उत्तरा भाद्रपद जनम, मानव गण मीन राशि ॥ १॥ योनि छाग मुहंकलं,
१ एकवर्ष छत्रस्थ.
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