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विमलनाथ भगवंत ॥ दोय वरस तप निर्जली, जंचुवले अरिहंत ॥२॥ षट्सहस मुनि सायशुंए, विमल विमल पद पाय ॥ श्री शुभवीरने सांइ , मळवार्नु मन थाय ॥ ३ ॥ इति ।
॥श्री अनंतनाथ जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ देवलोक दशमा थकी, गया अयोध्या ठाम ॥ हस्ति योनि अनंतने, देवगणे अभिराम ॥ १॥ रेवतीए जनम्या प्रभु, मीनराशि मुखकार ॥ त्रण वरसं छमस्थमा, नहि प्रश्नादि उच्चार ॥२॥ पीपल वृक्षे पामीयाए, केवळ लक्ष्मी निदान ॥ सात सहसशुं शिक वर्या, वीर कहे बहु मान ॥ ३ ।। इति ॥
॥बीज.॥ ॥ अनंत जिनेवर चादमा, अयोध्याए अवतरीया ।। सीहसेन कुछ केशरी, सुजशा उर धरीया ॥१॥ देह धनुष पंचाश मान, गुणशुं भरीया ॥ वरस त्रीश लाख आउखु श्री केवळ वरीया ॥२॥ सींचाणा लंछन तनुए, कनक वर्ण, देह ॥ रुपविजय कहे साहेबा, तुनशुं अविहड नेह ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ श्री धर्मनाथजीर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ धर्म धुरंधर धर्मनाथ, धन मुव्रता जायो । भानुराय मुक्त भानु जेम, मुरवधु हुलरायो ॥ १ ॥ धनुष पीस्तालीश देहमान, बन लंछन गायो। वरस लाख दश आउखु, हेमवान सुहायो ॥२॥
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