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( ८९.) ॥ श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तुति ॥
॥ श्रावण शुदि दिन पंचमी ॥ ए देशी ॥ .. ॥ अष्ट महा प्रतिहारशुं ए, शोभे स्वामी सुपास तो ।। महा भाग्य अरिह। प्रभुए, सुरनर जेहना दासतो ॥ गुण अतिशय वरणब्या ए, आगम ग्रंथ मोझार तो॥ मातंग शांता सुरी ए,वीर विधन अपहार तो॥१॥ इति ॥
॥ श्री चंद्रप्रजुजिन स्तुति ॥
॥ शांति जिनेसर समरीये ॥ ए देशी ॥ . ॥ चंद्रप्रभु मुख चंद्रमां, सखी जोवा जइए ॥ द्रव्य भाव प्रभु दरिसणे, निर्मलता थइए ॥ वांणी सुधारस वेलडी,सणीए ततखेव ॥ भजे भदंत भृकुटिका, वीरविजय ते देव ॥१॥ इति ।।
॥श्री सुविधिनाथजीनी स्तुति ॥ ॥ मृविधि सेवा करतां देवा, तनो विषय वासना ॥ शिव मुख दाता माता ज्ञाता, हरे दुःख दासना ।। नय गम भंगे 'गे चंगे, वाणी भव हारिका । अमर अतीते मोहातीते, विरंच मुता. रिका ॥१॥
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