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पातिक सवि छीजे ॥ ५ ॥ बीजे दीन गौतम सुणी, पाम्या केवळ ज्ञान || बार सहस गुणणु गुंणो, घर होसे कोड कल्याण || ६ || सुरनर किन्नर सहू मिली. गौतमने आपे || भट्टारक पदवी देई, सहू साखे थापे || ७ || जवार भट्टारक थकी, लोक करे जुहार ।। न भाइ जिमाडीया, नंदी बर्धन सार ॥ ८ ॥ भाइ बीज तिह थकी, वीर तणो अधिकार || जयविजय गुरु संपदा, मुजने दीयो मनोहार || ९ ||
॥ बोजुं ॥
॥ वीर जिनवर वीर जिनवर, चरम चौमास, नयरी अपापाये Water || हस्तिपाल राजन सभाये, कार्तिक अमावास्या स्यणिये || मुहूर्त शेष निर्वाण ताहिं ॥ सोल पहोर दे देशना, पहोत्या मुक्ति प्रझार ॥ नित्य दीवाली नय कहे, मलिया नृपति अढार ॥ १ ॥
श्रीजुं.
॥ देव मलिया देव मलिया, करे उत्सव रंग, मेरइयां हावे ग्रही ।। द्रव्य तेज उद्योत कीधो, भाव उद्योत जिनेंद्रनें ॥ ठाम ठाम एह ओच्छव प्रसिद्धो || लखकोडी छठ फल करी, कल्याणक करो एह ।। कवि नयविमल कहे इश्युं, धन धन दहाडो तेह ॥ २ ॥
चो
श्रीसिद्धार्थ नृप कुछ तिलो, त्रिशला जस मात ॥ हरि लंछन तनु सात हाथ, महिमा विख्यात ।। १ ।। श्रीश वरस गृहवास छंडी,
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