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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८१ ) ॥ श्रीअभिनंदन जिन स्तवन ॥ ॥ धुळेवा नगरमां पधारजो रे - ए देशी ॥ • ॥ बेकर जोडी विनवुं रे, अभिनंदन अवधाररे || दयालराय || अंतरयामी माहरोरे, आवागमन निवाररे || दयालराय || बेकर ॥ १ ॥ आगम वचने आकरोरे, सांभळी करम विपाकरे || दया० ॥ हुं शरणागत ताहरोरे, शरणे आयो ताकरे' || द० ॥ बेकर || २ || मीट अमीणी जो करे, तो भाजे भवना भीड || दया० ॥ परमेसर पीहर पखेरे, कुण जाणे पर पीडरे || दया० ॥ बेकर || ३ || थे उपगारी शिर सेहरोरे, भयभंजण भगवंतरे || दया० अरियण तोहिज औहटेरे, जो पखो करे बलवंतरें || दया० ॥ बेक२० ॥ ४ ॥ हुं अपराधी उपरेरे, महिर करो महाराजरे ॥ दया० ॥ मेघ न जोवे बरसतोरे, सम विसमी जिनराजरे ॥ दया० ॥ बेकर० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ श्रीसुमतिनाथ स्तवन । ॥ गरबानी देशी ॥ ॥ हांरे वाल्हो सुमति जिणंद जुहारीरे, वारी जाउँ भामणे रेली | हांरे प्रभु सुरतरु फळीओ माहरेरे, गुणनिधी आंगणे रेलो ॥ १ ॥ हरे मेंतो देवनो देव निहाळीरे, जीवन जगधणी रेलो || हांरे प्रभु तेजे झळामल दीपेरे, ओपी जेम ओपणीरेलो १ ताकीने २ मावित्र ३ फल्पवृक्ष. For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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