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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५५ ) :०: श्रीअरनाथ जिन स्तवन । (प्रथम गोवाला तणे भवेजी-ए देशी) अरजिन दरिशन दीजियेंजी, 'भविक कमल वन सूर ॥ मन तरसे मलवा घणुंजी, तुम्हे तो जइ रह्या दूर ॥ सोभागी तुम्हश्युं मुज मन नेह, तुमश्युं मुज मन नेहलोजी, जिम बपइयां मेह ॥ सो० ॥१॥ आवागमन पथिक तणुंजी, नहि शिव नगर निवेश ॥ कागल कुण हाथे लिखूजी, कोण कहे संदेश ॥ सो० ॥ २॥ जो सेवक संभारस्यो जी, अंतरयामी रे आप ॥ जश कहे तो मुज मन तणोजी, टलशे सघलो संताप ॥ सो० ॥३॥ श्रीमल्लिनाथ जिन स्तवन । ॥रसियानी (अथवा) धरम निणेसर गाउ रंगशुं-ए देशी॥ मल्लि जिणेसर मुजने तुम्हे मिल्या, जेह मांहिं सुखकंद वाल्हेसर ॥ ते कलियुग अम्हे गिरुओ लेख, नवि बीजा युगद्वंद ॥ वाल्हेसर ॥ म० ॥१॥ आरो सारो रे मुज पांचमो, जिहां तुम दरिशण दीठ वा० ॥ मरुभूमि पण यिति सुरतरु तणी, मेरु थकी हुइ इठ ॥ वा० ॥२॥ पंचम आरेरे तुम्ह मेलावडे, रुडो राख्यो रे रंग वा० ॥ चोथो आरोरे फिरि आव्यो गणुं, वाचक जश कहे चंग ॥ वा० ॥३॥ १ भवि जीवोरुपी कमळवनने खीलववा सूर्यसमान छो. २ वटेमानं जवु आवयु. ३ मारवाड, For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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