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( ३० ) चैत्री पुनमर्नु चैत्यवंदन.
॥ श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, सिद्धाचल साचो ॥ आदीश्वर जिनरायना,जोहां महिमा जायो।।१।।इहां अनंत गुणवंत साधु, पाम्या शिववास ।। एह गिरि सेवाथी अधिक, होय लील विलास ॥२॥ दुष्कृत सवि दूरे हरे ए, बहु भत्र संचित जेह ।। सकल तीथ शिर सेहरो, दान नमे धरी नेह ॥ ३ ॥
बीजु.
।। ए सीरथ उपर अनंत, तीर्थकर आव्या।। वली अनंता आवशे, समंतारस भाव्या ॥१॥ आ चोवीशी मांहि एक, नेमीश्वर पांखे।। जिन तेवीश समोसर्या, एम आगम भांखे ॥२॥ गणधर मुनिवर केवलो, समोसर्या गुणवंत ।। प्रेमे ते गिरि प्रणमतां, हरखे दान इसंत ॥ ३ ॥ इति ॥
त्रीजु.
॥श्री शत्रंजय सिद्ध क्षेत्र, पुंडरिक गिरि साचो ॥ विमलाचलने तीर्थराज, जस महिमा जाचो॥१॥ मुक्ति निलय शतकुट नाम, पुष्पदंत भणीजे॥ महापद्मने सहस्नपत्र,गिरिराज कहीजे ॥२॥ इत्यादिक बहु भांति शु ए, नाम जपो निरधार ॥ धीरविमल कविराजनो, शिष्य कहे सुखकार ॥ ३ ॥
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