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(१७) जिनो खिल ॥३॥ स्तुवंत रतावकं बीच, मन्यथा कथमीदशं ॥ प्रभोदाति चयश्चित्ते, जायते भुवनातिग ॥ ४ ॥ इति ॥
त्रीजु. ॥ समुद्रविजय कुलचंद नंद, शिवादेवी जाया ॥ यादव वंश नभोमणि, सौरोपुर ठाया ॥१॥ बालथकी ब्रह्मचर्यघर, गतमार प्रचार । भोक्ता निज आत्मिकगुण, त्यागी संसार ॥२॥ निःकारण जग जोवनेा ए, आशाने विसराम ।। दो नदयाल शिरोमणि, पूरण सूरतरु काम ॥ ३ ॥ पशुआं पुकार सुणी करी, छांडी गृहवास ।। तत्क्षण संयम आदरी, करी कर्मना नाश ॥४॥ केवल श्री पामी करीए, पहोता मुगतिमोझार ॥ जन्म मरण भय टालवा, ग्यान सदा सुखकार ।। ५ ।। इति ॥
चोथु . ॥ बावीशमा श्री नेमनाथ, नित्यउठी वदो ॥ समुद्रविजय सुत भानुसम, भविजन सुखकंदो ॥१॥ सघन श्याम दूति देहनी, दश धनुष्य शरीर ॥ अमित कांति यादव घणी, भांजे भवतीर ॥२॥ राजिमती रमणी तजीए, ब्रह्मचर्य धरधीर ॥ शिवरमणी सुख विलसतां, भूप नमे धरी धीर ॥ ३ ॥ इति ।।
पांचमुं. . ॥राजुल वर श्री नेमीनाथ, शामलीओ सारा ॥ शंख लंछन दश धनुष देह, मनमोहन गारो ॥१॥ समुद्रविजय राय कुळ
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