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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) जिनो खिल ॥३॥ स्तुवंत रतावकं बीच, मन्यथा कथमीदशं ॥ प्रभोदाति चयश्चित्ते, जायते भुवनातिग ॥ ४ ॥ इति ॥ त्रीजु. ॥ समुद्रविजय कुलचंद नंद, शिवादेवी जाया ॥ यादव वंश नभोमणि, सौरोपुर ठाया ॥१॥ बालथकी ब्रह्मचर्यघर, गतमार प्रचार । भोक्ता निज आत्मिकगुण, त्यागी संसार ॥२॥ निःकारण जग जोवनेा ए, आशाने विसराम ।। दो नदयाल शिरोमणि, पूरण सूरतरु काम ॥ ३ ॥ पशुआं पुकार सुणी करी, छांडी गृहवास ।। तत्क्षण संयम आदरी, करी कर्मना नाश ॥४॥ केवल श्री पामी करीए, पहोता मुगतिमोझार ॥ जन्म मरण भय टालवा, ग्यान सदा सुखकार ।। ५ ।। इति ॥ चोथु . ॥ बावीशमा श्री नेमनाथ, नित्यउठी वदो ॥ समुद्रविजय सुत भानुसम, भविजन सुखकंदो ॥१॥ सघन श्याम दूति देहनी, दश धनुष्य शरीर ॥ अमित कांति यादव घणी, भांजे भवतीर ॥२॥ राजिमती रमणी तजीए, ब्रह्मचर्य धरधीर ॥ शिवरमणी सुख विलसतां, भूप नमे धरी धीर ॥ ३ ॥ इति ।। पांचमुं. . ॥राजुल वर श्री नेमीनाथ, शामलीओ सारा ॥ शंख लंछन दश धनुष देह, मनमोहन गारो ॥१॥ समुद्रविजय राय कुळ For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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