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मैं कौन हूँ।
शिष्य-ज्या हमाग आत्मा भी स्वभावसे ईश्वर है ! कृपाकर विशेष समझाइये।
शिक्षक-यह आपको याद रखना चाहिये कि हरएक द्रव्य या पदार्थमें बहुतमे गुण और स्वभाव हुआ करने है। जैसे जड मिट्टी आदिमे चार गुण साफ प्रगट हैं स्पर्श, रम, गंध, वर्ण, वैसे आत्मामे ज्ञान. शाति, आनंद व अमूर्तीकपना मुग्न्य गुण है । यद्यपि गुण नो
और भी है परन्तु आत्माका स्वभाव समझानेके लिये आपको कुछ “समझने योग्य गुण ही हमने बतलाए है। हम आपको समझा देंगे कि ये गुण आत्मामे स्वभावमे हे या नहीं। आप दिल लगाकर सुन, आप थोडी देरके लिये और चिताएं छोडदें।
शिष्य-मुझे बडा आनन्द आरहा है। आप अच्छी तरह कहिये, मैं निश्चिन्त ।
शिक्षक-आगामें ज्ञान गुण हे यह तो आप भले प्रकार समझ गए है । वर्तमानमे हमारी और आपकी आत्मामें ज्ञान गुण मलीन है इससे हम व आप कम जानने है। मूल स्वभावमे ज्ञान -गुण उसको कहने हे जो सब जाननलायक बातोको जान सके । मृल स्वभावमें हरएक आत्मा सर्वज्ञ स्वरूप है । सब कुछ जाननेकी शक्ति इसमें है। यदि पूर्ण ज्ञानकी शक्ति हरएक आत्मामे न हो तो ज्ञानका विकाग या प्रकाश न हो । ज्ञान भीतरसे ही उन्नति करता हुआ या बढता हुआ चला जाता है। जितना २ हमारा अज्ञान पुस्तकोंके निमित्तसे व शिक्षकोंके निमित्तसे हटता जाता है उतना २ ज्ञान प्रगट होता जाता है। जैसा मैले सुवर्णमें सुवर्णकी सारी चमक है लेकिन वह मैलसे ढकी हुई है । जितना २ मैल