Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 इसलिये परमाणु कारण है और पुद्गल स्कन्ध कार्य है। कार्य को देखकर कारण का अनुमान किया जाता है-जैसे कि धूए के देखकर अग्नि का अनुमान रूप ज्ञान किया जाता है। इसी प्रकार पुद्गल स्कन्धों को देखकर परमाणु का अनुमान किया जाता है क्योंकि कारण के बिना कार्य नहीं होता है। ___एगे जंबूहीवे दीवे सव्वद्दीवसमुदाणं जाव अद्धंगुलं च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं। एगे समणे भगवं महावीरे इमीसे ओसप्पिणीए चउव्वीसाए तित्थयराणं चरमतित्थयरे सिद्धे बुद्धे मुत्ते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं एगा रयणी उहुं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। अद्धा णक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते, चित्ता णक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते, साइ णक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते। एगपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। एवं एगसमयठिइया, एगगुणकालगा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव एगगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। एगट्ठाणं समत्तं॥११॥
कठिन शब्दार्थ - जंबूहीवे - जम्बू द्वीप, दीवे - द्वीप, सव्वदीवसमुद्दाणं - सब द्वीप समुद्रों के मध्य में, परिक्खेवेणं - परिक्षेप-परिधि, किंचि - कुछ, विसेसाहिए - विशेषाधिक, चउव्वीसाएचौबीस, तित्थयराणं - तीर्थंकरों में, चरमतित्थयरे - अंतिम तीर्थङ्कर, सिद्धे- सिद्ध, बुद्धे - बुद्ध, मुत्ते - मुक्त, सव्वदुक्खप्पहीणे - सर्व दुःख प्रहीण-सब दुःखों का क्षय करने वाले, अणुत्तरोववाइयाणं- अनुत्तरौपपातिक, उडं उच्चत्तेणं - शरीर की ऊंचाई, रयपणी - रलि-हाथ, अद्धाआर्द्रा, एगतारे - एक तारा वाला, णक्खत्ते - नक्षत्र, पण्णत्ते - कहा गया है, चित्ता - चित्रा, साइ - स्वाति, एगट्ठाणं - पहला स्थान, समत्तं - समाप्त । ___भावार्थ - सब द्वीप समुद्रों के मध्य में जम्बूद्वीप नामक एक द्वीप है। उसका परिक्षेप यानी परिधि (घेराव) ३१६२२७ योजन ३ कोस १२८ धनुष १३ ।। साढे तेरह अङ्गल से कुछ विशेषाधिक है। इस अवसर्पिणी काल में भगवान् ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थङ्करों में अन्तिम तीर्थङ्कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अकेले ही सिद्ध बुद्ध मुक्त हुए हैं यावत् सब दुःखों का क्षय करने वाले हुए हैं। अनुत्तरौपपातिक अर्थात् विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध इन पांच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले देवों के शरीर की ऊंचाई एक रत्नि यानी हाथ प्रमाण है। आर्द्रा नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। चित्रा नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। स्वाति नक्षत्र एक तारा वाला कहा गया है। आकाश के एक प्रदेश का अवगाहन कर रहने वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं। इसी प्रकार एक समय की स्थिति वाले और एक गुण काले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं यावत् एक गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गये हैं। एक एक पदार्थों का वर्णन करने वाला पहला स्थान समाप्त हुआ। .
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org