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स्थान ३ उद्देशक ३
२०७ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 हेतु अनुगामी कहलाता है। उस हेतु से होने वाला वस्तु स्वरूप का निर्णय आनुगमिक व्यवसाय है। लौकिक व्यवसाय के तीन भेदों के विषय में टीकाकार ने लिखा है
अर्थस्य मूलं निकृतिः क्षमा च, धर्मस्य दानं च दया दमश्च । . कामस्य वित्तं च वपुर्वयश्च, मोक्षस्य सर्वोपरमः क्रियासु ॥
- धन का मूल कपट है और धर्म का मूल क्षमा, दान, दया और दम (इन्द्रिय निग्रह) है। काम का मूल द्रव्य, वपु-नीरोगी देह और वय-युवावस्था है और मोक्ष का मूल सभी क्रियाओं से उपरमनिवृत्ति रूप है। अर्थादि के लिये अनुष्ठान करना अर्थादि व्यवसाय कहलाते हैं।
तिविहा पोग्गला पण्णत्ता तंजहा - पओगपरिणया मीसापरिणया वीससापरिणया। तिपइट्ठिया णरगा पण्णत्ता तंजहा - पुढवीपइट्ठिया आगासपइट्ठिया आयपइट्ठिया। णेगमसंगहववहाराणं पुढवी पइट्ठिया, उज्जुसुयस्स आगासपइट्ठिया, तिण्ह सद्दणयाणं आयपइट्ठिया॥९६॥ __ भावार्थ - तीन प्रकार के पुद्गल कहे गये हैं। यथा - प्रयोगपरिणत यानी जीव के व्यापार से बने हुए, मिश्रपरिणत यानी प्रयोग और स्वभाव से बने हुए और विलसा परिणत यानी स्वभाव से बने हुए। नरकें तीन वस्तुओं के आधार पर रही हुई हैं। यथा - पृथ्वीप्रतिष्ठित, आकाशप्रतिष्ठित और आत्मप्रतिष्ठित। नैगम संग्रह और व्यवहार नय वाले मानते हैं कि नरकें पृथ्वी के आधार पर रही हुई हैं और ऋजुसूत्र नय वाले.मानते हैं कि नरकें आकाश प्रतिष्ठित हैं और शब्द, समभिरूढ और एवंभूत इन तीन शब्द नय वाले मानते हैं कि नरकें आत्मप्रतिष्ठित यानी जीवों के आधार पर रही हुई हैं।
विवेचन - पुद्गल तीन प्रकार के कहे हैं - १. प्रयोग परिणत - जो जीव के व्यापार से बने हुए हैं जैसे वस्त्र आदि। २. मिश्र परिणत - प्रयोग और स्वभाव से बने हुए जैसे वस्त्र के पुद्गल ही प्रयोग परिणाम से वस्त्र रूप में और विस्रसा परिणाम से नहीं भोगने (उपयोग में लेने) पर भी पुराना होता है वह मिश्र परिणत पुद्गल है ३. विस्रसा - जो बादल और इन्द्र धनुष आदि की तरह स्वभाव से परिणत हुए हैं।
तिविहे मिच्छत्ते पण्णत्ते तंजहा - अकिरिया, अविणए, अण्णाणे। अकिरिया तिविहा पण्णत्ता तंजहा - पओगकिरिया, समुदाणकिरिया, अण्णाणकिरिया। पओगकिरिया तिविहा पण्णत्ता तंजहा - मणपओगकिरिया वयपओगकिरिया, कायपओगकिरिया।समुदाणकिरिया तिविहा पण्णत्ता तंजहा - अणंतरसमुदाणकिरिया परंपरसमुदाणकिरिया, तदुभयसमुदाणकिरिया। अण्णाणकिरिया तिविहा पण्णत्ता तंजहा - मइअण्णाणकिरिया, सुयअण्णाणकिरिया, विभंगअण्णाणकिरिया। अविणए
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