Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 406
________________ स्थान ४ उद्देशक ३ ३८९ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 गृहस्थ वास का त्यागी होता है किन्तु परिज्ञात संज्ञा वाला नहीं होता है, जैसे तापस आदि । कोई एक पुरुष परिज्ञात संज्ञा वाला भी होता है और गृहस्थवास का त्यागी भी होता है, जैसे सुसाधु । कोई एक पुरुष न तो परिज्ञात संज्ञा वाला होता है और न गृहस्थवास का त्यागी होता है, जैसे कुसाधु । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अनेक दृष्टियों से पुरुषों के चार-चार भेद बतलाये गये हैं। प्रथम चौभंगी - आयत्थे णाममेगे...........की टीका इस प्रकार दी गयी है "आत्मानं बिभर्ति-पुष्णातीत्यात्मम्भरिः प्राकृतत्वादायंभरे तथा परं बिभत्तीति परम्भरिः प्राकृत त्वात्परंभरेइति, तत्र प्रथम भंगे स्वार्थकारक एव, सच जिनकल्पिको, द्वितीयः परार्थकारक एव, सच भगवानहन्, तस्य विवक्षया सकलस्वार्थ समाप्तेः वर प्रधान प्रयोजन प्रापण प्रवणप्राणितत्वात्, तृतीये स्वयरार्थकारी, स च स्थविरकल्पिकः विहितानुष्ठानतः स्वार्थकरत्वाद्विधिवत् सिद्धान्तदेशनातश्च परार्थसम्पादकत्वात्, चतुर्थे तूभयानुपकारी, स च मुग्धमतिः कश्चिद् यथाच्छन्दो वेति, एवं लौकिकपुरुषोऽपि योजनीयः।" - अर्थ - १. जो केवल अपनी आत्मा का कार्य करता है-स्वार्थी पुरुष अथवा जिनकल्पी मुनि जो केवल अपनी आत्मा की साधना करते हैं धर्मोपदेश आदि नहीं देते हैं। २. केवल दूसरों का उपकार करने वाले तीर्थंकर भगवान् क्योंकि केवलज्ञान प्राप्त कर लेने के कारण वे कृतकृत्य हो गए है। अब उनको अपना कोई काम करना बाकी नहीं रहा है, वे सम्पूर्ण जगत् के जीवों के कल्याण के लिए उपदेश देते हैं। ३. स्थविरकल्पी साधु वे अपनी आत्मा के कल्याण के लिए महाव्रतों आदि का पालन करते हैं और यथा अवसर धर्मोपदेश भी देते हैं। ..४. आत्मा और दूसरों का किसी का हित नहीं करते हैं। मन्दबुद्धि अज्ञानी तथा यथाछन्द साधु (अपनी इच्छानुसार उत्सूत्र प्ररूपणा करने वाला) यह साधुओं की अपेक्षा घटित किया गया है। इस प्रकार लौकिक पुरुषों के लिए भी घटित कर लेना चाहिए। घोडे की उपमा और पुरुष बत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता तंजहा - इहत्थे णाममेगे णो परत्थे, परत्थे णाममेगे णो इहत्थे, एगे इहत्थे वि परत्थे वि, एगे णो इहत्थे णो परत्थे । चत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता तंजहा - एगेणं णाममेगे वड्डइ एगेणं हायइ, एगेणं णाममेगे वड्डइ दोहिं हायइ, दोहिंणाममेगे वडाइ एगेणं हायइ, दोहिं णाममेगे वङ्कइ दोहिं हायइ । चत्तारि कंथगा पण्णत्ता तंजहा - आइण्णे णाममेगे आइण्णे, आइण्णे णाममेगे खलुंके, खलुंके णाममेगे आइण्णे, खलुंके णाममेगे खलुंके । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - आइण्णे णाममेगे आइण्णे चउब्भंगो । चत्तारि कंथगा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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