Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 427
________________ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 . निषेध कर्ता का भी अभाव हो जाता है। निषेध कर्ता के अभाव से सभी का अस्तित्व स्वतः सिद्ध हो जाता है। ____ अज्ञानवादी अज्ञान को ही श्रेय मानते हैं। इसलिए वे भी मिथ्या दृष्टि हैं और उनका कथन स्ववचन बाधित है। क्योंकि "अज्ञान श्रेय है" यह बात भी वे बिना ज्ञान के कैसे जान सकते हैं और बिना ज्ञान के वे अपने मत का समर्थन भी कैसे कर सकते हैं ? इस प्रकार अज्ञान की श्रेयता बताते हुए उन्हें ज्ञान का आश्रय लेना ही पड़ता है। ___ केवल विनय से ही स्वर्ग, मोक्ष पाने की इच्छा रखने वाले विनयवादी मिथ्या दृष्टि हैं। क्योंकि ज्ञान और क्रिया दोनों से मोक्ष की प्राप्ति होती है। केवल ज्ञान या केवल क्रिया से नहीं। ज्ञान को छोड़कर एकान्त रूप से केवल क्रिया के एक अङ्ग का आश्रय लेने से वे सत्यमार्ग से दूर हैं। मेघ और पुरुष,माता-पिता,राजा चत्तारि मेहा पण्णत्ता तंजहा - गज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्ता वि वासित्ता वि, एगे णो गज्जित्ता णो वासित्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - गजित्ता णाममेगे णो वासित्ता । चत्तारि मेहा पण्णत्ता तंजहा - गज्जित्ता णाममेगे णो विजुयाइत्ता, विजुयाइत्ता णाममेगे णो गज्जित्ता, एगे गज्जित्ता-वि विजुयाइत्ता वि, एगे णो गज्जित्ता णो विज्जुयाइत्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - गज्जित्ता णाममेगे णो विजुयाइत्ता । चत्तारि मेहा पण्णत्ता तंजहा - वासित्ता णाममेगे णो विज्जुयाइत्ता, विज्जुयाइत्ता णाममेगे णो वासित्ता, एगे वासित्ता वि विजुयाइत्ता वि, एगे णो वासित्ता णो विजुयाइत्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - वासित्ता णाममेगे णो विजुयाइत्ता । चत्तारि मेहा पंण्णत्ता तंजहा - कालवासी णाममेगे णो अकालवासी, अकालवासी णाममेगे णो कालवासी, एगे कालवासी वि अकालवासी वि, एगे णो कालवासी णो अकालवासी । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - कालवासी णाममेगे णो अकालवासी । चत्तारि मेहा पण्णत्ता तंजहा - खेत्तवासी णाममेगे णो अखेत्तवासी, अखेत्तवासी णाममेगे णो खेत्तवासी, एगे खेत्तवासी वि अखेत्तवासी वि, एमे णो खेत्तवासी णो अखेत्तवासी । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा-खेत्तवासी भाममेगे णो अखेत्तवासी । चत्तारि मेहा पण्णत्ता तंजहा - जणइत्ता णाममेगे णो णिम्मवइत्ता, णिम्मवइत्ता णाममेगे णो जणइत्ता, एगे जणइत्ता वि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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