Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक ४
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सुक्कं - शुक्र-पुरुष का वीर्य, ओयं - ओज, पजायइ - उत्पन्न होती है, रत्तसुक्काणं- स्त्री का रक्त और पुरुष का वीर्य । - :... ... भावार्थ - चार प्रकार का पानी का गर्भ कहा गया है यथा - ओस, महिका यानी धूअर, शीत और उष्ण । चार प्रकार का पानी का गर्भ कहा गया है यथा - हिमपात यानी बर्फ गिरना, बादलों से आकाश का ढक जाना, बहुत ठंड और बहुत गर्मी और पञ्चरूपक यानी गर्जारव; बिजली, जल, हवा
और बादल इन पांचों का होना । यही बात आगे गाथा में कही गई है । गाथा मूल पाठ में दी हुई है जिसका अर्थ यह है -. .
माघ मास में हिमपात रूप गर्भ होता है । फाल्गुन मास में आकाश बादलों से ढका रहता है । चैत्र मास में शीतोष्ण और वैशाख मास में पञ्चरूपक गर्भ होता है ।
चार प्रकार का स्त्री गर्भ कहा गया है यथा - स्त्री रूप, पुरुष रूप, नपुंसकरूप और बिम्बरूप । यही बात दो गाथाओं में बतलाई गई है।
पुरुष का वीर्य अल्प हो और स्त्री का ओज अधिक हो तो उस गर्भ में स्त्री उत्पन्न होती है । जब स्त्री का ओज अल्प और पुरुष का वीर्य अधिक हो तो उस गर्भ में पुरुष पैदा होता है । स्त्री का रक्त और पुरुष का वीर्य ये दोनों बराबर हो तो नपुंसक उत्पन्न होता है । दो स्त्रियों के परस्पर कुचेष्टा करने से उस गर्भ में बिम्ब पैदा होता है।
- विवेचन - उदक गर्भ अर्थात् कालांतर में जल बरसने के हेतु। उदक गर्भ चार प्रकार के कहे हैं - ओस, धूअर, शीत और उष् । जिस दिन ये उदक गर्भ उत्पन्न होते हैं तब से नाश नहीं होने पर उत्कृष्ट छह माह में वर्षा होती है। भगवती सूत्र के दूसरे शतक के पांचवें उद्देशक में कहा गया है - ___ "उदगगब्भेणं भंते ! उदगगब्भेति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं छम्मासा।" । _ अर्थात् - उदग गर्भ का कालमान कम से कम एक समय और उत्कृष्ट छह मास होता है। इसके बाद तो गर्भस्थ जल अवश्य ही बरसने लग जाता है।
- अन्यत्र ऐसा भी कहा है - १. पवन २. बादल ३. वृष्टि ४. बिजली ५. गर्जारव ६. शीत ७. उष्ण ८. किरण ९. परिवेष (कुंडालु) और १०. जल मत्स्य - ये दस भेद जल को उत्पन्न करने के हेतु हैं। . बिम्ब- एक मांस का पिण्ड होता है । इसमें हड्डी केश आदि नहीं होते हैं ।
चूला वस्तुएँ, काव्य, समुद्घात, सम्पदा ___उव्वायपुवस्स णं चत्तारि चूलियावत्थू पण्णत्ता । चउव्विहे कव्वे पण्णत्ते तंजहा - गजे पज्जे कत्थे गेये । णेरड्याणं चत्तारि समुग्धाया पण्णत्ता तंजहा - वेयणासमुग्याए, कसायसमुग्याए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउव्वियसमुग्घाए । एवं वाउकाइयाणं वि । अरहओ णं अरिट्ठणेमिस्स चत्तारि सया चोहसपुवीणं अजिणाणं
मासा।"
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